मणिपुरः मशाल लेकर सड़कों पर उतरे लोग

 

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मणिपुरः इंफाल में मशाल लेकर सड़कों पर उतरे लोग, प्रदर्शन में महिलाएं भी शामिल

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मणिपुर में हिंसा से परेशान लोग: महिलाओं ने संभाला मोर्चा, एकजुट होकर शांति के लिए मशाल लेकर सड़कों पर उतरीं. मणिपुर में एक महीने पहले भड़की मीतेई और कुकी समुदाय के लोगों के बीच जातीय हिंसा में 100 से अधिक लोगों की जान चली गई है। राज्य सरकार ने अफवाहों को फैलने से रोकने के लिए 11 जिलों में कर्फ्यू लगा दिया था और इंटरनेट सेवाओं पर प्रतिबंध लगा दिया था।मणिपुर में लगातार हिंसा भड़कती जा रही है। इससे आम नागरिकों को परेशानी हो रही है। राज्य में शांति लाने के लिए महिलाओं ने मोर्चा संभाल लिया है। राज्य में हो रही हिंसा की निंदा करने के लिए कई जिलों में सैकड़ों महिलाएं शनिवार रात सड़कों पर उतरीं। इंफाल के पूर्व- पश्चिम, थौबल और काकचिंग जिलों में शाम सात बजे से रात आठ बजे तक सड़कों पर महिलाएं इकट्ठी हुईं और रैली निकाली। इस दौरान महिलाओं के हाथ में आग की मशालें थीं। कोंगबा में मीरा पैबी की नेता थौनाओजम किरण देवी ने पत्रकारों से कहा कि हम सब सरकार और केंद्र सरकार से बहुत निराश है। वे हिंसा को रोकने और सुरक्षा प्रदान करने में विफल रहे हैं। सड़कों पर उतरी महिलाओं ने म्यांमार से अवैध अप्रवासियों की घुसपैठ का भी विरोध किया। महिलाओं ने राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) को लागू करने की मांग को लेकर नारेबाजी की।बता दें, मणिपुर में एक महीने पहले भड़की मीतेई और कुकी समुदाय के लोगों के बीच जातीय हिंसा में 100 से अधिक लोगों की जान चली गई है। राज्य सरकार ने अफवाहों को फैलने से रोकने के लिए 11 जिलों में कर्फ्यू लगा दिया था और इंटरनेट सेवाओं पर प्रतिबंध लगा दिया था।मणिपुर की राजधानी इंफाल बिल्कुल बीच में है। ये पूरे प्रदेश का 10 फीसदी हिस्सा है, जिसमें प्रदेश की 57 फीसदी आबादी रहती है। बाकी चारों तरफ 90 फीसदी हिस्से में पहाड़ी इलाके हैं, जहां प्रदेश की 42 फीसदी आबादी रहती है। इंफाल घाटी वाले इलाके में मैतेई समुदाय की आबादी ज्यादा है। ये ज्यादातर हिंदू होते हैं। मणिपुर की कुल आबादी में इनकी हिस्सेदारी करीब 53 फीसदी है। आंकड़ें देखें तो सूबे के कुल 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई समुदाय से हैं।वहीं, दूसरी ओर पहाड़ी इलाकों में 33 मान्यता प्राप्त जनजातियां रहती हैं। इनमें प्रमुख रूप से नागा और कुकी जनजाति हैं। ये दोनों जनजातियां मुख्य रूप से ईसाई हैं। इसके अलावा मणिपुर में आठ-आठ प्रतिशत आबादी मुस्लिम और सनमही समुदाय की है। भारतीय संविधान के आर्टिकल 371C के तहत मणिपुर की पहाड़ी जनजातियों को विशेष दर्जा और सुविधाएं मिली हुए हैं, जो मैतेई समुदाय को नहीं मिलती। 'लैंड रिफॉर्म एक्ट' की वजह से मैतेई समुदाय पहाड़ी इलाकों में जमीन खरीदकर बस नहीं हो सकता। जबकि जनजातियों पर पहाड़ी इलाके से घाटी में आकर बसने पर कोई रोक नहीं है। इससे दोनों समुदायों में मतभेद बढ़ गए। मैतेई ट्राइब यूनियन पिछले कई सालों से मैतेई समुदाय को आदिवासी दर्जा देने की मांग कर रही है। मामला मणिपुर हाईकोर्ट पहुंचा। इस पर सुनवाई करते हुए मणिपुर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से 19 अप्रैल को 10 साल पुरानी केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय की सिफारिश प्रस्तुत करने के लिए कहा था। इस सिफारिश में मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने के लिए कहा गया है।कोर्ट ने मैतेई समुदाय को आदिवासी दर्जा देने का आदेश दे दिया। अब हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच केस की सुनवाई कर रही है।बेंच ने कहा कि वह हाईकोर्ट में लंबित रिजर्वेशन के मुद्दे में नहीं जाएंगे। कानून व्यवस्था राज्य सरकार का विषय है। कोर्ट ने मामले में राज्य सरकार से स्टेटस रिपोर्ट मांगी है। कोर्ट ने पूछा है कि हिंसा के बाद क्या सुरक्षा मुहैया कराई गई? क्या सहायता दी गई है? पुनर्वास के बारे में क्या प्लान है? ये मणिपुर में हिंसा फैलने का दूसरा बड़ा कारण है। मणिपुर सरकार ने जंगलों और वन अभयारण्य में गैरकानूनी तरीके से कब्जा किए लोगों को हटाने के लिए अभियान शुरू किया है। मुख्यमंत्री बीरेन सिंह की सरकार का कहना है कि आदिवासी समुदाय के लोग संरक्षित जंगलों और वन अभयारण्य में गैरकानूनी कब्जा करके अफीम की खेती कर रहे हैं। ये कब्जे हटाने के लिए सरकार मणिपुर फॉरेस्ट रूल 2021 के तहत फॉरेस्ट लैंड पर किसी तरह के अतिक्रमण को हटाने के लिए एक अभियान चला रही है।वहीं, आदिवासियों का कहना है कि ये उनकी पैतृक जमीन है। उन्होंने अतिक्रमण नहीं किया, बल्कि सालों से वहां रहते आ रहे हैं। सरकार के इस अभियान को आदिवासियों ने अपनी पैतृक जमीन से हटाने की तरह पेश किया। जिससे आक्रोश फैला। विरोध तेज हुआ तो सरकार ने इन इलाकों पर धारा-144 लागू कर दी। प्रदर्शन पर रोक लगा दी, लेकिन इसके उलट विरोध प्रदर्शन ने उग्र रूप धारण कर दिया।  सूबे में एक साथ कई चीजें होने लगीं। एक तरफ मैतेई आरक्षण का विरोध, दूसरी तरफ सरकार का अवैध अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई को लेकर आदिवासी और सरकार आमने-सामने थे। इस बीच, कुकी विद्रोही संगठनों ने भी 2008 में हुए केंद्र सरकार के साथ समझौते को तोड़ दिया। दरअसल, कुकी जनजाति के कई संगठन 2005 तक सैन्य विद्रोह में शामिल रहे हैं। मनमोहन सिंह सरकार के समय, 2008 में तकरीबन सभी कुकी विद्रोही संगठनों से केंद्र सरकार ने उनके खिलाफ सैन्य कार्रवाई रोकने के लिए सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन यानी SoS एग्रीमेंट किया।इसका मकसद राजनीतिक बातचीत को बढ़ावा देना था। तब समय-समय पर इस समझौते का कार्यकाल बढ़ाया जाता रहा, लेकिन इसी साल 10 मार्च को मणिपुर सरकार कुकी समुदाय के दो संगठनों के लिए इस समझौते से पीछे हट गई। ये संगठन हैं जोमी रेवुलुशनरी आर्मी और कुकी नेशनल आर्मी। ये दोनों संगठन हथियारबंद हैं। हथियारबंद इन संगठनो के लोग भी मणिपुर की हिंसा में शामिल हो गए और सेना और पुलिस पर हमले करने लगे।तनाव की शुरुआत चुराचंदपुर जिले से हुई। ये राजधानी इंफाल के दक्षिण में करीब 63 किलोमीटर की दूरी पर है। इस जिले में कुकी आदिवासी ज्यादा हैं। गवर्नमेंट लैंड सर्वे के विरोध में 28 अप्रैल को द इंडिजेनस ट्राइबल लीडर्स फोरम ने चुराचंदपुर में आठ घंटे बंद का ऐलान किया था। देखते ही देखते इस बंद ने हिंसक रूप ले लिया। उसी रात तुइबोंग एरिया में उपद्रवियों ने वन विभाग के ऑफिस को आग के हवाले कर दिया। 27-28 अप्रैल की हिंसा में मुख्य तौर पर पुलिस और कुकी आदिवासी आमने-सामने थे।  इसके ठीक पांचवें दिन यानी तीन मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर ने 'आदिवासी एकता मार्च' निकाला। ये मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा देने के विरोध में था। यहीं से स्थिति काफी बिगड़ गई। आदिवासियों के इस प्रदर्शन के विरोध में मैतेई समुदाय के लोग खड़े हो गए। लड़ाई के तीन पक्ष हो गए।  एक तरफ मैतेई समुदाय के लोग थे तो दूसरी ओर कुकी और नागा समुदाय के लोग। देखते ही देखते पूरा प्रदेश इस हिंसा की आग में जलने लगा। चार मई को चुराचंदपुर में मुख्यमंत्री बीरेन सिंह की एक रैली होने वाली थी। पूरी तैयारी हो गई थी, लेकिन रात में ही उपद्रवियों ने टेंट और कार्यक्रम स्थल पर आग लगा दी। सीएम का कार्यक्रम स्थगित हो गया। 

वैसे तो अहमदी समुदाय के ख़िलाफ़ धार्मिक नफ़रत लंबे समय से चली आ रही थी, लेकिन यह आज से क़रीब 50 साल पहले 7 सितंबर 1974 को उस वक़्त और तेज़ हो गई, जब पाकिस्तान की संसद ने एक संवैधानिक संशोधन के ज़रिए अहमदियों को ग़ैर-मुस्लिम घोषित कर दिया.सितंबर 1974 में हुए इस संवैधानिक संशोधन के बाद उस समय के प्रधानमंत्री ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो ने एक रैली में बेहद जोशीला भाषण दिया और कहा, 'देख लें, आपके सामने हमारे कारनामे हैं. आपके सामने हमारी कोशिशें हैं. आप देख लें कि अहमदियों का मुद्दा इस दौर में 90 साल से था, इसी दौर में इसके हल का आख़िरी फ़ैसला भी नेशनल असेंबली ने किया है.विश्लेषकों का दावा है कि पूर्व प्रधानमंत्री जिन प्रयासों का ज़िक्र कर रहे थे, उन्ही कोशिशों ने पाकिस्तान को एक ऐसे रास्ते पर डाला जिसने अगले पचास साल में अहमदी समुदाय के लिए पाकिस्तान की ज़मीन बहुत छोटी कर दी.सितंबर 1974 में हुए इस संवैधानिक संशोधन के क़रीब 10 साल बाद पाकिस्तान के सैन्य तानाशाह जनरल ज़िया-उल-हक के शासनकाल के दौरान पाकिस्तानी राष्ट्र एक क़दम और आगे बढ़ा. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का मानना है कि 1984 में पारित इस अध्यादेश के बाद अहमदियों को अपनी आस्था के अनुसार ज़िंदगी गुज़ारना मुश्किल हो गया और उन्हें विभिन्न मुक़दमों का सामना करना पड़ा.इस अध्यादेश के तहत, अहमदिया समुदाय का कोई भी सदस्य ख़ुद को मुस्लिम घोषित नहीं कर सकता है. साथ ही वो अपने पूजा स्थलों के लिए मस्जिद शब्द का इस्तेमाल नहीं कर सकता है और न ही वो अज़ान दे सकता है. वो 'अस्सलामो अलैकुम' नहीं कह सकता है या 'बिस्मिल्लाह' नहीं पढ़ सकता है. अगर वो इनका उल्लंघन करता है तो उसे तीन साल की सज़ा हो सकती है. इन क़ानूनों के तहत अहमदी के तौर पर अपनी आस्था का पालन करना अपराध घोषित किया गया है, लेकिन दूसरी ओर पाकिस्तान के संविधान और क़ानून के मुताबिक़ धर्म या आस्था के आधार पर किसी व्यक्ति को निशाना बनाना भी अपराध है. सितंबर 1974 में दूसरे संवैधानिक संशोधन के पचास साल बाद अब स्थिति यह है कि सोशल मीडिया पर हर दिन ऐसे वीडियो और क्लिप देखने को मिलते हैं जिनमें अहमदियों के ख़िलाफ़ भड़काऊ बयान जारी किए जाते हैं. यहां तक कि इस अल्पसंख्यक समुदाय की हत्या को अनिवार्य घोषित करने वाली भड़काऊ टिप्पणियां भी देखने को मिलती हैं.ये मामला सिर्फ़ राजनीतिक या धार्मिक रैलियों तक सीमित नहीं है बल्कि टीवी चैनल्स और सोशल मीडिया पर भी जिस तरह के बयान आते हैं उसके नतीजे में अहमदियों की जानें ख़तरे में पड़ जाती हैं. अल्पसंख्यक समुदाय को उनकी धार्मिक मान्यता की वजह से निशाना बना रहे हैं और ये अपराध है.’लेकिन इन वीडियोज़ में बयान देते लोग या उन्हें सोशल मीडिया पर फैलाने वाले लोगों के ख़िलाफ़ किसी भी क़िस्म की कोई कार्रवाई नहीं की जाती.हाल ही में देश के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनसीआरएच) ने अल्पसंख्यक अधिकारों के बारे में एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसका शीर्षक था- ‘मॉनिटरिंग द प्लाइट ऑफ़ द अहमदिया कम्युनिटी’ (अहमदिया समुदाय की दुर्दशा की निगरानी). साल 2024 की शुरुआत में पंजाब के हासिलपुर इलाक़े में एक अहमदी व्यक्ति बुरहान अहमद (असली नाम छिपाया गया है) पर हमला ऐसे ही उकसावे का एक उदाहरण है. एचआरसीपी की रिपोर्ट के मुताबिक़, स्थानीय ज़िला पुलिस अधिकारी ने उन्हें (आयोग को) बताया कि दो युवा लड़कों ने एक स्थानीय मस्जिद में भड़काऊ भाषण के बाद अहमदी समुदाय के एक व्यक्ति की हत्या कर दी और बाद में अपने कथित कबूलनामे में कहा, 'उन्होंने ऐसा एक धार्मिक व्यक्ति की ओर से दिए गए फ़तवे के आधार पर और जन्नत जाने के लिए किया.’कुछ धार्मिक समूहों का दावा है कि पाकिस्तान के क़ानूनों के मुताबिक़ अहमदी मुस्लिम धार्मिक स्थलों की शैली में अपने धार्मिक स्थल नहीं बना सकते हैं और इस वजह से, पिछले कुछ सालों में कई अहमदी धार्मिक स्थलों के कुछ हिस्सों को ध्वस्त कर दिया गया है.

पिछले 24 घंटों के दौरान, तटीय आंध्र प्रदेश में मध्यम से भारी बारिश हुई।दक्षिण तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश में हल्की से मध्यम बारिश के साथ एक या दो बार भारी बारिश हुई।नागालैंड, गंगीय पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड के कुछ हिस्सों, मध्य प्रदेश, राजस्थान, कोंकण और गोवा, तटीय कर्नाटक, केरल, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, दिल्ली और पंजाब के कुछ हिस्सों में हल्की से मध्यम बारिश हुई।लक्षद्वीप, तमिलनाडु, आंतरिक कर्नाटक, मराठवाड़ा, मध्य महाराष्ट्र, गुजरात, सिक्किम, उप-हिमालयी पश्चिम बंगाल, जम्मू कश्मीर, हरियाणा और लद्दाख में हल्की बारिश हुई।अगले 24 घंटे को दौरान, ओडिशा, दक्षिण छत्तीसगढ़, तेलंगाना, तटीय आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में हल्की से मध्यम बारिश के साथ कुछ स्थानों पर भारी बारिश की संभावना है।गंगीय पश्चिम बंगाल, झारखंड, उत्तरी छत्तीसगढ़, दक्षिण-पश्चिम उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पूर्वी राजस्थान, पूर्वी गुजरात, विदर्भ, कोंकण और गोवा, तटीय कर्नाटक, केरल, लक्षद्वीप, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, मेघालय, नागालैंड, मणिपुर और मिजोरम में हल्की से मध्यम बारिश संभव है।जम्मू कश्मीर, लद्दाख, हरियाणा, पश्चिमी राजस्थान, सौराष्ट्र और कच्छ, मराठवाड़ा, मध्य महाराष्ट्र, अंतर कर्नाटक, रायलसीमा, तमिलनाडु, असम, त्रिपुरा और अरुणाचल प्रदेश में हल्की बारिश संभव है।



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