सरकार की मंसा पर आनंद शर्मा का विचार


सरकार की मंसा पर आनंद शर्मा का विचार 


2019 का ये साल चुनावी वर्ष होने के कारण रोमांच से भरा होगा। सियासत में वजूद कायम रखने के लिए सभी दल अपनी अपनी रड़नीति अपनायेंगे, कुछ सही कुछ गलत,फैसला जनता का होगा। जो भी हो राजनीतिक हांड़ी गरम हो चुकी है। प्रियंका गाँधी के महासचिव बनाये जाने से उत्तरप्रदेष की राजनीति में एक नया मोड आ गया है। आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है। सभी TV चैनलों ने अपने अपने हिसाब से राजनीतिक डिबेट चालू कर  दिया है। सियासत का बाजार गर्म है। ऐसे में कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने मौजूदा सरकार के आने वाले वित्त बजट को लेकर सरकार की मंसा पर एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। आनंद शर्मा ने अपने ट्विटर अकाउंट के जरिये सरकार के मंसूबों पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने लिखा कि  " सरकार की मंशा संदिग्ध है। पहले किए गए झूठे वादों के औंधें मुंह गिरने के बाद, इस बजट के जरिए सरकार जनता को गुमराह करने के लिए बड़ी घोषणाएं करना चाहती है जो संविधान और संसदीय मर्यादाओं के खिलाफ हैं।"



सरकार के मंसूबों के साथ उन्होंने बजट पेश करने के तरीके पर भी सवाल खड़ा किया।  उन्होंने लिखा कि " बजट प्रस्तुत करने के लिए सरकार के लिए सरकार के पास 12 महीने का कार्यकाल शेष होना चाहिए। सरकार का यह फैसला विचित्र व अभूतपूर्व है क्योंकि केवल 3 महीनों का कार्यकाल शेष है। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि बजट के 75 दिन के अंदर वित्त विधेयक पारित करना होता है। "


पुनः अपनी ट्वीट में उन्होंने आगे उन्होंने लिखा कि " लोक सभा चुनाव से पहले भाजपा सरकार द्वारा पूर्ण बजट प्रस्तुत करना सभी नियमों और स्थापित संसदीय परम्पराओं के खिलाफ है। सरकार का कार्यकाल 5 वर्ष का है जो मई 2019 में समाप्त हो जाएगा। पांच बजट प्रस्तुत करने के बाद, सरकार केवल वोट ऑन अकाउंट पेश कर सकती है। "


 


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