उठो द्रोपदी वस्त्र संभालो अब गोविन्द न आएंगे :
उठो द्रोपदी वस्त्र संभालो अब गोविन्द न आएंगे :
छोड़ो मेहंदी भुजा संभालो, खुद ही अपना चीर बचा लो I
जाल बिछाये बैठे शकुनी,मस्तक सब बिक जाएंगे I
उठो द्रोपदी वस्त्र संभालो, अब गोविन्द न आएंगे I
कब तक आस लगाओगी तुम बिके हुये अखबारों से I
कैसी रक्षा माँग रही हो, दुःशासन दरबारों से I
स्वयं जो लज्जा हीन पड़े हैं, वो क्या लाज बचायेंगे I
उठो द्रोपदी वस्त्र संभालो अब गोविन्द न आएंगे I
कल तक केवल अंधा राजा, अब गूंगा बहरा भी है I
होंठ सिल दिए जनता के, कानों पर पहरा भी है I
तुम्हीं कहो ये अश्रु तुम्हारे किसको क्या समझाएंगे I
उठो द्रोपदी वस्त्र संभालो अब गोविंग न आएंगे I I
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें