वोट

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ये नये ठिकाने ढूंढ़ चुके है।


सरकारें तो आती है , सरकारें तो जाती है।


हम वासी भारत के है, और कहाँ हम जायेगे।


खो गई अगर गरिमा इसकी, ये नये ठिकाने ढूंढ़ चुके  है।


बिखर गया यदि भारत तो, ये नये ठिकाने ढूंढ़, चुके है।


द्वेष अगर आपस में पलते, भारत का खून ही बह जायेगा।


कौन बचायेगा हमको, इनको तो भारत का  भूखा लाल बचायेगा।


मिल बॉट सभी खा जायेगे, जिस तरह बॉट कर रखा ।


अपने-अपने हिस्से का, स्वाद सभी को मालूम है।


 कैसे हलाल हम हो पायेगे, तरकीब बाँट कर रखा है।


क्या नियति यही है राजनीति की, या इनकी नियति पथभ्रष्ट हुई।


सोची-समझी सब चाले है, अब हमे समझना ही होगा।


'भारत माँ के सच्चे सपूत बनकर, अब इनसे ही लड़ाना होगा।


'आपस का बैर मिटा करके, इनका ही बैरी बनना होगा।


हो गये बहुत ये शातिर है, ये चाल समझ में आती है।


पर वार किधर से कर बैठे, ये वार समझना भी होगा।


'अब बंदर- बॉट नही होने देगे, यह इतिहास समझना होगा ।


भारत का भूगोल बदल कर, बांटा गया शहीदों को।


भारत का इतिहास बदल कर, बाँट रहे है भारतीयता को।


है भारत के ये भी परिंदे, पर इन्हें कोई मलाल नही।


 


बिखर गया यदि भारत तो, ये नये ठिकाने ढूंढ़ चुके  है।


तुम पड़ोस मेंं लड़ जाओगे, य़े पड़ोस  ही छोड़ चुके हैं।


नये ठिकाने ढूंढ़ चुके  है, ये नये ठिकाने ढूंढ चुके  है।


                                                                       वेद प्रकाश


 


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