Budget 2020

 



Budget 2020: नए इनकम टैक्स से मिली राहत या फंसे चक्कर में? 

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31 मार्च 2020 के बाद टैक्स पे करने पर कोई पेनल्टी नहीं. इसके बाद 30 जून तक देनी होगी कुछ अतिरिक्त राशि.
10-12.5 लाख इनकम पर 20 प्रतिशत टैक्स, 12.5-15 लाख तक की इनकम पर 25 प्रतिशत टैक्स
नए स्लैब में टैक्स देने पर छोड़नी होगी पुराने स्लैब की छूट. किस स्लैब में टैक्स देना है, यह करदाता के ऊपर.
बजट में करदाताओं के लिए बड़ी राहत का एलान. सालाना 5 लाख तक की आय पर कोई टैक्स नहीं.
5 से 7.5 लाख की आमदनी पर 10 प्रतिशत टैक्स, 7.5 से 10 लाख पर 15 प्रतिशत टैक्स

सोया फाइबर, सोया प्रोटिनएल्कोहोलिक पेयस्कीम्ड मिल्कटूना बेटकृषि और जैविक उत्पादरॉ शुगरप्यूरीफाइड टेरेपेथालिक एसिडन्यूज प्रिंट, लाइट वेट कोटेड पेपर
महंगा
क्ले आयरन और स्टीलचाइनीज सिरामिक से निर्मित टेबलवियर, किचनवियरकॉपर और पोर्सिलिनसिगरेट और तंबाकू उत्पादइंपोर्टेड फुटवीयर और फर्नीचरइंपोर्टेड मेडिकल इक्वीपमेंटदीवार पर लगने वाले पंखे


 2019-2020FY 2020-2021 2.5 लाख रुपए तकNil.  2.5 - 5 लाख रुपए तक5%Nil 5 - 7.5 लाख रुपए तक20%10% 7.5 - 10 लाख रुपए तक20%15% 10 - 12.5 लाख रुपए तक30%20% 12.5 - 15 लाख रुपए तक30%25% 15 लाख से ऊपर30%30%


किसान  मिडिल क्लास  महिला  उद्योग और निवेश  स्वास्थ्य-शिक्षा  रेलवे  रियल एस्‍टेट

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किसानों और कृषि क्षेत्र को बजट 2020 से क्‍या फायदा होगा?
किसानों की आय बढ़ेगी
कृषि क्षेत्र का विकास होगा
ग्रामीण अर्थव्‍यवस्‍था मजबूत होगी
फसलों की अच्‍छी कीमत मिलेगी

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सरकार की हर एक रुपये की आय में 64 पैसे टैक्स से आते हैं


वित्त वर्ष 2020-21 के लिए 10% नॉमिनल विकास दर का अनुमान


: बजट में आर्थिक रफ्तार बढ़ाने का प्रयास किया गया है.


वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने दूसरे बजट में मध्य वर्ग पर नजर-ए-इनायत बरसाने का मकसद साफ है। वह मध्य वर्ग के हाथ में पैसा देना चाहती हैं, ताकि वह इस पैसे को अपनी दैनंदिन जिंदगी के मोर्चे पर खर्च कर सके। मौजूदा दौर में हमने जिस नई आर्थिकी को अंगीकार किया है, उसका बुनियादी आधार उपभोग है।


पिछले करीब दो साल से भारतीय अर्थव्यवस्था के डगमगाने की जो बातें की जा रही थीं, उसे भले ही नकारा जाता रहा, लेकिन आर्थिक सर्वेक्षण में सरकार ने स्वीकार कर ही लिया है। बेशक सरकार इसके लिए वैश्विक आर्थिक सुस्ती, निवेश और मांग में कमी को जिम्मेदार ठहरा रही हो, लेकिन प्रकारांतर से उसने मान लिया है कि आर्थिक सुस्ती को मांग और निवेश बढ़ाकर ही पूरा किया जा सकता है। मध्य वर्ग को सबसे खुशी उसके आयकर दायरे में मिलने वाली छूट से मिलती है। वह छूट से बचे पैसों का इस्तेमाल अपनी निजी जिंदगी की आवश्यकताओं को पूरा करने में करता है।


वित्त मंत्री ने आयकर में छूट देकर एक तरह से मध्य वर्ग को खर्च के लिए उकसाया है।

आखिर टैक्स में छूट के मायने क्या हैं? 
जाहिर है कि वित्त मंत्री ने आयकर में छूट देकर एक तरह से मध्य वर्ग को खर्च के लिए उकसाया है। आर्थिक सर्वेक्षण में सरकार ने माना है कि आर्थिक सुस्ती 2020 की दूसरी छमाही में दूर हो जाएगी। ऐसा लगता है कि ऐसा कहते वक्त वित्त मंत्री के दिमाग में मध्य वर्ग को आयकर छूट की बात जरूर रही होगी।


दरअसल, उन्हें भी लगता है कि भारत का विशाल मध्य वर्ग ही हिचकोले खाती भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी पर ला सकेगा, इसलिए उन्होंने आयकर छूट के दायरे को बढ़ाते हुए पांच लाख तक की आय पर कोई टैक्स ना लगाने और उसके बाद सिर्फ तीन और स्लैब रखने एवं उसमें भी कटौती करने का फैसला किया है।


बेशक यह रकम सीधे अब सरकारी खजाने में नहीं मिलेगी, लेकिन इस रकम के सहारे भारतीय आर्थिक परिदृश्य में जब हलचल बढ़ेगी तो वह देश की आर्थिक सेहत के लिए अच्छी होगी। लेकिन इस व्यवस्था को वैकल्पिक बनाने का विचार थोड़ा संशय पैदा करता है। अव्वल तो होना यह चाहिए कि यह अनिवार्य होता।


वरिष्ठ नागरिक को मिलने वाली रेल किराए में छूट और गैस सब्सिडी छोड़ने जैसे अपवादों को छोड़ दें तो भारतीय नागरिक का अभी ऐसा मानस नहीं विकसित हुआ है कि वह कर खुद देने के लिए आगे आए, इसलिए बेहतर होता कि नए कर स्लैब को अनिवार्य बनाया जाता, ना कि वैकल्पिक। 


किसानों के लिए बजट में राहत दी गई।

भारत के विशाल मध्य वर्ग के साथ ही देश का एक और बड़ा वर्ग है, जो देश की आर्थिक और राजनीतिक-दोनों सेहत की बुनियाद है। करीब 67 प्रतिशत जनसंख्या अब भी खेती-किसानी पर या तो सीधे या परोक्ष रूप से निर्भर है। लेकिन कटु सत्य यह है कि इस क्षेत्र की देश के सकल घरेलू उत्पाद में करीब 13 फीसद की ही हिस्सेदारी है। इसे सामान्य शब्दों में समझने की कोशिश करें तो देश की आमदनी के तेरह फीसद हिस्से पर देश की 67 प्रतिशत जनता निर्भर है।


जाहिर है कि खेती-किसानी पर बड़ा दबाव है। मोदी सरकार जब सत्ता में आई थी तो उसने 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुना करने का वादा किया था। वह लक्ष्य अभी हासिल किया जाना बाकी है। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए वित्त मंत्री ने किसानों के लिए 16 योजनाओं की ना सिर्फ घोषणा की है, बल्कि इनके लिए 2.83 लाख करोड़ रुपये आवंटित भी किया है।


ध्यान रखने की बात यह है कि इस रकम में करीब 1.2 लाख करोड़ रुपये कृषि और सिंचाई के लिए रखी गई है। पीएम कुसुम योजना के तहत 20 लाख किसानों को सोलर पंप लगाने में आर्थिक मदद देने का फैसला ना सिर्फ किसानों के हित में है, बल्कि देश में अक्षय ऊर्जा पर बढ़ती जरूरतों के प्रति जागरूकता बढ़ाने का रास्ता भी होगा। गर्मियां आते ही देश के कई इलाके जल संकट से जूझने लगते हैं।


इससे सबसे ज्यादा प्रभावित 100 जिलों के लिए बड़ी योजनाएं लाने और 15 लाख किसानों को ग्रिड कनेक्टेड पंपसेट से जोड़ने का फैसला भी खेती-किसानी का परिदृश्य बदलने वाला होगा। इसके साथ ही किसानों को 15 लाख करोड़ रुपए का कर्ज देने, दूध परिरक्षण क्षमता 80 लाख टन और 20 करोड़ 80 लाख टन मछली उत्पादन का भी लक्ष्य रखा गया है। इससे जहां रोजगार बढ़ेगा, वहीं ग्रामीण बाजारों में तेजी आने की संभावना भी बढ़ेगी।


रोजगार की संभावनाएं और सरकार 
हाल ही में आई एक अध्ययन रिपोर्ट में बताया गया है कि अगर शहरी खर्च में दस फीसद की बढ़ोत्तरी होती है, तो ग्रामीण इलाकों में रोजगार की संभावनाओं में 4.8 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी होती है। उम्मीद की जानी चाहिए कि टैक्स छूट और ग्रामीण एवं कृषि विकास के लिए दी जाने वाली रकम से ना सिर्फ शहरों, बल्कि गांवों में भी आर्थिक तेजी लाने में मदद मिलेगी। 


वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में 'आकांक्षी भारत, सभी के लिए आर्थिक विकास करने वाला भारत और सभी की देखभाल करने वाला समाज केंद्रित भारत का विचार दिया है। हर बजट प्रस्ताव से ऐसे ही कल्याणकारी योजनाओं और उन्हें जमीनी स्तर पर अमलीजामा पहनाए जाने की की उम्मीद की जाती है। ऐसी उम्मीद रेलवे और स्वास्थ्य सेवा को लेकर दिए बजट प्रस्तावों को लेकर भी है।


वित्त मंत्री ने 27 हजार किलोमीटर रेलवे ट्रैक का विद्युतीकरण और रेलवे के विकास के साथ ही स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए 69 हजार करोड़ रुपये आवंटित करने का प्रस्ताव किया है। जनआरोग्य योजना के लिए 6400 करोड़ के साथ ही साल 2025 तक टीवी को जड़ से खत्म करने के लक्ष्य के साथ 3.6 लाख करोड़ का आवंटन किया जाना भी बड़ा कदम है।


इसी तरह बजट में शिक्षा के लिए 99300 करोड़ जबकि कौशल विकास के लिए 3000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। इन सब योजनाओं को जारी करते हुए वित्त मंत्री ने उम्मीद जताई है कि देश को इन सबका बहुत फायदा होगा।
 


वित्त मंत्री ने इस साल नई शिक्षा नीति आने की उम्मीद भी जताई है और जीएसटी को और सहज बनाने का भी वादा किया है।

शिक्षा क्षेत्र में बजट की जरूरत 
वित्त मंत्री ने इस साल नई शिक्षा नीति आने की उम्मीद भी जताई है और जीएसटी को और सहज बनाने का भी वादा किया है। लेकिन इन बिंदुओं पर सरकार पर सवाल भी उठते हैं। सरकार अपने पांच साल के कार्यकाल में नई शिक्षा नीति लाने में क्यों नाकाम रही और आखिर सहज जीएसटी व्यवस्था पहले ही दौर में क्यों नहीं लागू की जा सकी।


जीएसटी लागू होने के बाद भारत सरकार को उम्मीद थी कि प्रत्यक्ष कर के रूप में उसे हर महीने एक लाख करोड़ रुपए मिलेंगे, लेकिन वह कभी लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाया। इसी तरह सरकार ने भारत की आर्थिक सेहत की रीढ़ समझे जाने वाले भारतीय जीवन बीमा निगम का कुछ हिस्सा आईपीओ लाकर बेचने का भी प्रस्ताव किया है। 


जाहिर है कि इन बिंदुओं पर सरकार को जवाब देना होगा और उसे विपक्ष को ही नहीं आम जनता को भी संतुष्ट करना होगा। उसे यह समझाना होगा कि आखिर क्या वजह रही कि संकट के हर समय में सरकार का आर्थिक साथ निभाने वाले जीवन बीमा निगम की हिस्सेदारी बेचनी पड़ रही है। 
बहरहाल, इन बजट प्रस्तावों को देखकर कहा जा सकता है कि वित्त मंत्री ने मध्य वर्ग और किसानों को राहत देकर देश की सुस्त पड़ी अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने की कोशिश की है।


पांच खरब की अर्थव्यवस्था बनाने के लिए देश को ना सिर्फ आर्थिक सुस्ती से निजात पाना होगा, बल्कि हर साल करीब आठ फीसद की विकास दर भी हासिल करनी होगी।


इसके लिए मजबूत इच्छा शक्ति के साथ ही प्रतिबद्ध नौकरशाही और सरकारी तंत्र की जरूरत होगी, जो इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिहाज से लाए गए बजट प्रस्तावों को जमीनी हकीकत बना सकें। हालांकि अब तक नौकरशाही का जो रवैया रहा है, वह बहुत आश्वस्तकारी नहीं रहा है। इस ओर भी वित्त मंत्री ध्यान देतीं तो देश का भला करने की रफ्तार और तेज और विश्वस्त होती।



वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शनिवार को पेश किए गए बजट में करदाताओं को इनकम टैक्स देने के दो विकल्पों का तोहफा दिया। नए विकल्प में टैक्स रेट तो कम रखे गए हैं पर इसमें टैक्सपेयर्स को तमाम टैक्स छूटों से वंचित कर दिया गया है। इसका अर्थ यह हुआ कि अगर आपने टैक्स के नए विकल्प का चयन किया तो आपको सेक्शन 80सी, सेक्शन 80डी, एचआरए पर टैक्स छूट तथा हाउजिंग लोन पर टैक्स छूट के फायदों से हाथ धोना पड़ेगा। ऐसे में करदाता अब इस उलझन में हैं कि उनके लिए कौन सा विकल्प फायदेमंद होगा, पुराना या नया।
, 'नई टैक्स व्यवस्था में कम दर पर टैक्स भुगतान करने का विकल्प होगा, लेकिन इसमें किसी भी तरह के डिडक्शन का फायदा नहीं मिलेगा। टैक्सपेयर्स के लिए कौन सा विकल्प फायदेमंद होगा इसके लिए उन्हें नए तथा पुराने टैक्स विकल्प के तहत अपनी टैक्स देनदारी का कैलकुलेशन करना पड़ेगा।'

नया आसान लेकिन हो सकता है नुकसान
, 'नया विकल्प आसान है, क्योंकि इसमें किसी भी तरह के डिडक्शन के लिए कोई माथापच्ची नहीं करनी है। लेकिन अगर आप पहले ही टैक्स सेविंग के लिए विभिन्न साधनों में निवेश कर चुके हैं और चाहते हैं कि डिडक्शन का फायदा लें तो आप पुराने वाले टैक्स विकल्प का ही चयन करें।'

अगर टैक्सपेयर्स टैक्स अदा करने के नए विकल्प का चयन करते हैं तो उन्हें निम्नलिखित इग्जेंप्शन से हाथ धोना पड़ेगा:
1. वेतनभोगी कर्मचारियों को मिलने वाला लीव ट्रैवेल अलाउंट इग्जेंप्शन।
2. वेतनभोगी कर्मचारियों को सैलरी के हिस्से के रूप में मिलने वाला 'हाउस रेंट अलाउंस इग्जेंप्शन'।
3. सैलराइड टैक्सपेयर्स को मिलने वाला 50 हजार रुपये का स्टैंडर्ड डिडक्शन।
4. आयकर अधिनियम के सेक्शन 16 के तहत इंटरटेनमेंट अलाउंस और एंप्लॉयमेंट/प्रफेशनल टैक्स के लिए डिडक्शन।
5. सेल्फ ऑक्यूपाई या खाली मकान के हाउजिंग लोन के इंट्रेस्ट पर मिलने वाला टैक्स बेनिफिट।
6. इनकम टैक्स के सेक्शन 57 के क्लॉज (iia) के तहत फैमिली पेंशन पर 15,000 रुपये की टैक्स छूट।
7. सेक्शन 80D के तहत मेडिकल इंश्योरेंस पर मिलने वाला डिडक्शन भी क्लेम नहीं कर पाएंगे।
8. सेक्शन 80DD तथा 80DDB के तहत डिसेबिलिटी के लिए मिलने वाला टैक्स छूट भी नहीं ले पाएंगे।
9. सबसे लोकप्रिय टैक्स छूट 80C का फायदा भी नए टैक्स विकल्प में नहीं मिलेगा।
10. सेक्शन 80ई के तहत एजुकेशन लोन पर मिलने वाला टैक्स बेनिफिट भी क्लेम नहीं कर पाएंगे।
11. आईटी ऐक्ट के सेक्शन 80G के तहत चैरिटेबल इंस्टिट्यूशंस को दिए गए दान पर मिलने वाले टैक्स छूट का फायदा भी नहीं मिल पाएगा।
आयकर अधिनियम के चैप्टर 6ए के तहत मिलने वाले तमाम डिडक्शंस जैसे सेक्शन 80C, 80CCC, 80CCD, 80D, 80DD, 80DDB, 80E, 80EE, 80EEA, 80EEB, 80G, 80GG, 80GGA, 80GGC, 80IA, 80-IAB, 80-IAC, 80-IB, 80-IBA, इत्यादि का फायदा आप नए टैक्स विकल्प में नहीं उठा पाएंगे।


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