कोरोना का एक मात्र इलाज | शुभ-लाभ ।

कोरोना का एक मात्र इलाज | शुभ-लाभ ।


कोरोनो वायरस हमारी मानव सभ्यता के लिए एक चुनौती बनकर खड़ा है, जो मानवीय सभ्यता- ज्ञान, विज्ञान, अध्यात्म्, भक्ति, आस्था धर्म, दर्शन, शास्त्र, राजनीति, मानवतावाद, सामाजिक संगठन, व्यापार, व्यवसाय इन सभी के सम्मुख एक प्रश्न लेकर खड़ा है ? जिसके सामने एक चुनौती, जो भविष्य की ओर आगाह कर रहा है। सभ्यता- ज्ञान, विज्ञान, अध्यात्म्, भक्ति, आस्था धर्म, दर्शन, शास्त्र, राजनीति, मानवतावाद, सामाजिक संगठन, व्यापार, व्यवसाय ने हमें अनुशासन सिखाया, प्रकृति की रक्षा के लिए, प्राणियों के लिए, और मानव के लिए। ये सूत्र और नियम अपने कर्म व्यवहार में प्रकृति के साथ सहचर हो कर चलने को सिखाया। ऐसी पारिस्थितिकी का निर्माण करने को कहा जिससे  निरंतर मानव-अनुकूल प्रकृति का निर्माण हो सके और मानव के साथ सम्पूर्ण प्राणी और स्वयं प्रकृति, एक-दूसरे के साथ सहयोग करते हुए प्रकृति का आनन्द ले सके। स्वविवेक के साथ जब तक मानव, ज्ञान, विज्ञान, अध्यात्म्, भक्ति, आस्था, धर्म, दर्शन, शास्त्र, राजनीति, मानवतावाद, सामाजिक संगठन, व्यापार, व्यवसाय करता रहा। प्रकृति की चिंता होती रही। सभ्यता और मानवता सुरक्षित रही। परन्तु जब अपने निहित अदूरदर्शी निहित स्वार्थ के कारण साम-दाम-दण्ड-भेद का प्रयोग कर मानवता या मानव को भ्रमित किया गया। प्रकृति को छला गया। इनकी गलत व्याख्यें कर जनमानस के दिमाग में, मानव के जीवन में भरे गये। इन्हे मानव को करने के लिए मजबूर किया गया। सामान्य मानव कायरों की तरह अज्ञानियों की तरह भ्रमित हुआ, मजबूर हुआ । सभ्यता- ज्ञान, विज्ञान, अध्यात्म्, भक्ति, आस्था दर्शन, धर्म शास्त्र, राजनीति, मानवतावाद, सामाजिक संगठन, व्यापार, व्यवसाय का नेतत्व करने वालो की दुकान चल डगरी और फल-फल रही है। आज कोरोन वायरस अभिशाप मानवता के सम्मुख आकर खड़ हो गया है। सभी की दुकानें बन्द है। किसी की भी नेतृत्व क्षमता काम नही आ रही है। सभी असहाय है? __


   आज भावी पीढ़ी, एक बेटा, एक बेटी अपने पिता-माता से पूँछती है कि हमें घरों में क्यों बन्द रहना पड़ रहा है ? आज हम खेलने क्यों नही जा पा रहें हैं ? आज हम अपने मित्रों से क्यों नही मिल पा रहें हैं ? आज हम स्कूल क्यों नही जा पा रहें हैं ? आज हमें ऐसे कैद किसने किया है ? तो आज हम इनसे सम्मान चाहने वाले, पिता-माता या पूर्वज बन कर चुप है। हमारे सामने पछतावे के अलावा कोई जवाब नहीं है।


   आज जहाँ मानव अस्तित्व एक ऐसे संकट में खड़ा है, अमीर, गरीब, ताकतवर, कमजोर, स्त्री, पुरुष, ज्ञान, विज्ञान, अध्यात्म, दुआ, पंडित, मौलवी सभी इसे पीडित और पराजित हैं। सभी का स्वार्थ आज बौना है? सभी का स्वार्थ आज नंगा हो चुका है। सभी कीड़ों की भॉति आज मसले जा रहे है। अबोध लोगों के साथ, प्रकृति के साथ, स्वार्थपूर्ण कृत्य का यह मानव को भोग है। भविष्य के लिए मानव जीवन की अन्तिम चेतावनी।        आज पूरे विश्व को बैठकर इस पर सोचना चाहिए कि कैसे हम अपने आने वाली पीढ़ियों और स्वयं को बचा पायें । इस प्रकृति का आनन्द प्राप्त कर पाये। जिसका केवल और केवल एक ही उपाय है प्रकृति की रक्षा जो दो शब्दों से पूर्ण किया जा सकता है –


                              ।। शुभ-लाभ ।।


    हम कोई भी ऐसा व्यवसाय, उत्पादकता, ब्याख्या न करे जिससे लाभ तो प्राप्त हो परन्तु उपभोक्ता या ग्राहक का शुभ उससे छिन जाये । जैसे- कोल्ड ड्रिंक, सिगरेट फास्टफूड आदि बेचने वाले उत्पादक का तो लाभ होता है परन्तु भ्रमवश ग्राहक की हानि ही होती है। ग्राहक को भ्रमित कर बेच दिया जाता है। तमाम तरकीबों से ग्राहक बनाये जाते है और उनका मानसिक दोहन किया जाता है। जिससे प्रकृति का संतुलन बिगड़ता है और मानव की आन्तिरिक और बाह्य शक्ति कमजोर होती है प्रकृति असंतुलित होती है जिससे मानव के अनुरुप न प्रकृति  बचती है और न पारिस्थितिकी, और कोरोना जैसे वायरस का का जन्म होता है जो मानव के लिए विनाश का संकेत है। सभ्यता- ज्ञान, विज्ञान, अध्यात्म्, भक्ति, आस्था दूआ, धर्म, दर्शन, शास्त्र, राजनीति, मानवतावाद, सामाजिक संगठन, व्यापार, व्यवसाय के नेतृत्व करने वाले या व्याख्या करने वाले, उत्पादक लोग की सम्पूर्ण जिम्मेदारी बनती की वह उपभोक्ता या ग्राहक के शुभ का पहले ध्यान रखे, फिर अपने लाभ पर विचार करे, क्योंकि उन्हें ही पता होता है कि हमारा उत्पाद कैसा है, हमारा विचार कैसा है, इसका उद्देश्य क्या है। ग्राहक को पूर्ण जानकारी नही होती या उससे छिपायी भी जाती है। भ्रमित किया जाता है और स्वाभाविक रूप से वह भ्रमित होता है। इसलिए सम्पूर्ण जिम्मेदारी नेतृत्व करने वाले की ही होती है, जिसे पहले अपने ग्राहक, उपभोक्त, अनुयायी, भक्त, पाठक या कहे कि मानवता या प्रकृति के शुभ का प्रथम ध्यान रखना है इसके बाद ही अपने लाभ को प्राप्त करना है इसलिए सम्पूर्ण जिम्मेदारी उत्पादक को ही लेनी होगी या है अगर इस प्रकृति को बचाना है। मानव प्रजाति को बचाना है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी इनके नेतृत्वकर्ताओं को ही लेनी पड़ेगी । नही तो कोरोना जैसे वायरस मानव जैसे प्राणी पर भारी पड़ेगे और मानव अस्तित्व ही खतरे में आ जायेगा इसलिए प्रकृति और मानव का शुभ पहले लाभ बाद में। ।शुभ-लाभ ।


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