आपदा को अवसर में बदलने का समय

 इसमें कोई संदेह नहीं कि विश्व में लाखों लोगों के लिए काल बनी COVID-19 वैश्विक आपदा सदी की सबसे बड़ी त्रासदी है। इसने वैश्विक अर्थव्यवस्था को लगभग ठप कर दिया है। चहुँओर बेरोजगारी तथा भुखमरी का खतरा आसन्न है। इसमें सबसे ज्यादा मध्यम वर्ग और निम्न वर्ग को प्रभावित किया है। इसका कोई त्वरित निदान भी नहीं है। जब तक कि वैक्सीन ना आ जाए तब तक हमें इस महामारी के साथ ही जीना होगा।
    कल रात राष्ट्र के नाम संबोधन में हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री जी ने आगे की रणनीति के बारे में बहुत महत्वपूर्ण बातें कही हैं। उन्होंने कहा कि यह आपदा को अवसर में बदलने का समय है। उन्होंने यह भी कहा कि लॉक डाउन 4 अलग तरह का होगा। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि हमें आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ना होगा और इसके लिए उन्होंने 20 लाख करोड़ के पैकेज का ऐलान किया।



      इससे यह स्पष्ट है कि लॉक डाउन 4 में आर्थिक गतिविधियों को शुरू करने पर जोर होगा लेकिन यह लॉक डाउन के नियमों का कड़ाई से पालन करते हुए करना होगा।
सरकार ने मध्यम, लघु एवं कुटीर उद्योगों को संजीवनी प्रदान करने का मन बना लिया है।  इसके लोकस में स्वदेशी मॉडल होगा और फोकस में मध्यमवर्ग तथा श्रमिक एवं कामगार होंगे। वर्तमान परिस्थिति में भूमंडलीकरण या ग्लोबलाइजेशन जैसी धारणाएं तार-तार हो चुकी हैं। इस आपदा ने एलपीजी की संपूर्ण धारणा पर पूर्ण विराम लगा दिया है। ऐसे में स्वदेशी मॉडल अपनाकर आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ना ही एकमात्र विकल्प है। यह कभी भाजपा के घोषणापत्र का महत्वपूर्ण बिंदु हुआ करता था लेकिन  उन परिस्थितियों में यह प्रतिमानात्मक परिवर्तन  Paradigmatic Change  कठिन ही नहीं अपितु असंभव सा था। आज इस आपदा ने इस प्रतिमान आत्मक परिवर्तन हेतु एक बड़ा अवसर प्रदान किया है।
         इस प्रतिमान को जमीनी धरातल पर लागू करने के लिए जनमानस से कुछ मानसिक परिवर्तन Psychological Settings की भी अपेक्षा है। मसलन यह कि उनको ब्रांडेड और विदेशी का मोह छोड़ना होगा। जैसा कि प्रधानमंत्री जी ने कहा कि लोकल Local के लिए वोकल Vocal होना पड़ेगा। आवश्यकताओं के कारण मांग Demand तो आज भी उत्पन्न होंगे लेकिन पूर्ति की श्रृंखला Supply Chain में परिवर्तन की आवश्यकता है। अगर पूर्ति की श्रृंखला स्थानीय होगी तो यह मत सिर्फ बड़े पैमाने पर रोजगार उपलब्ध कराएगी अपितु अनावश्यक ट्रांसपोर्टेशन से भी बचाएगी। पूर्ति की श्रृंखला स्थानीय होने का यह भी फायदा होगा कि स्थानीय स्तर पर धनागम सुनिश्चित होगा जिससे यह पुन: मांग को बढ़ाएगी।
          मध्यम, लघु एवं कुटीर उद्योगों के मजबूत होने का एक बड़ा फायदा यह भी होगा कि हमें डंपिंग से छुटकारा मिलेगा। डंपिंग वह अवधारणा है जिसके अंतर्गत कोई विदेशी राष्ट्र सस्ते में दूसरे राष्ट्र में अपने सामानों को डंप कर देता है जिससे उस राष्ट्र का उद्योग बर्बाद होने लगता है। ऐसे में उन सामानों के लिए हम उस राष्ट्र पर निर्भर भी हो जाते हैं और हमारा घरेलू उद्योग बर्बाद हो जाता है। इसके लिए एंटी डंपिंग एक्ट बना है लेकिन व्यावहारिक परिस्थितियों में इस पर पूर्ण रूप से अंकुश संभव नहीं है, क्योंकि वैश्विक व्यापार की बहुत सारी बाध्यताएं भी हैं। इस महामारी ने हमें ऐसा अवसर प्रदान किया है कि हम डंपिंग को रोक सकें। जैसे हम बहुत सारे सामानों के लिए चीन पर निर्भर हो गए हैं। इसके पीछे हमारी यह मानसिकता जिम्मेदार है कि हमें सस्ते और आकर्षक सामान चाहिए। इसकी सबसे बड़ी कमी यह है कि जब हम कोई चीन का या कोई भी विदेशों का बना सामान खरीदते हैं तो हम वहां के लोगों को रोजगार देते हैं और साथ ही साथ हम चीन पर निर्भर भी हो जाते हैं। ऐसे में उन सामानों की सप्लाई को लेकर भविष्य में चीन ब्लैकमेल भी कर सकता है। यह सस्ते सामान टिकाऊ भी नहीं होते हैं। इसलिए हमें अपनी मानसिकता में आमूलचूल परिवर्तन करने की आवश्यकता है।
        अगर हम स्वदेशी मॉडल को अपना लें तो चीन के साथ जो हमारे व्यापार घाटा है वह अपने आप समाप्त हो जाएगा।  इसके अतिरिक्त विदेशी वस्तुओं का क्रय करके जो रोजगार के अवसर हम विदेशों को दे  देते हैं वह हमें प्राप्त होने लगेगा और इस तरह से हम बेरोजगारी को बहुत कम कर सकते हैं।
 भारत एक विकासशील देश है इसलिए यहां का समाज संक्रमणशील है। हम परंपरागत मूल्यों को त्याग कर आधुनिकता के चक्कर में विदेशी मूल्यों को ग्रहण करने लगते हैं और उसी को विकास समझते हैं।  उदाहरण के तौर पर दीपावली हमारे यहां दीपों का त्यौहार हुआ करता था। दीपावली के समय में कीट पतंगों की संख्या आश्चर्यजनक रूप से बढ़ जाती है ऐसे में दीपों के माध्यम से उन कीट पतंगों का  खात्मा भी हो जाया करता था।  आज हम दीपावली पर चाइनीज झालर और सजावटी सामान लगाते हैं  तथा चायनीज पटाखे फोड़ते हैं। ऐसा करके हम अपना पैसा और रोजगार चीन को दे देते हैं।  अगर हम मिट्टी के बने दिए  और मोमबत्ती जलाएंगे तो हमारा पैसा और रोजगार हमारे ही किसी भाई को मिलेगा।  अगर हम अपनी मानसिकता में थोड़ा बदलाव कर लें और इस क्रम में ब्रांडेड, विदेशी और स्टेटस सिंबल जैसी धारणाओं को दरकिनार कर दें, तो हमारे देश में भी रोजगार की कमी नहीं रहेगी। अगर हम यह परिवर्तन करने में सफल रहे तो यह आपदा ही हमारे लिए अवसर बन जाएगी।
        यह सत्य है कि स्वतंत्रता के पश्चात से ही चीन हमारा प्रतिद्वंदी रहा है। चीन की सुपर पावर बनने की चाहत ने इस  प्रतिद्वंदिता को शत्रुता में बदल दिया है। वह जहां आर्थिक क्षेत्रों में एकतरफा फायदे के लिए चालबाजियां करता है और  सीमा विवाद के बावत दबाव बनाता है वहीं दूसरी ओर वैश्विक मंचों पर वह भारत को रोकने की  कोशिश करता है।  लेकिन ताजा घटनाक्रम में वैश्विक बिरादरी में इस आपदा के बाबत आरोपी है और विश्व समुदाय में अलग-थलग पड़ चुका है। आज  स्थिति यह है कि जापान अमेरिका समेत अन्य देश चीन से अपना निवेश शिफ्ट करने की तैयारी में। सैकड़ों कंपनियां चीन से भारत की ओर रुख कर रही हैं।  ऐसे में यह संभावना प्रबल है कि मेक इन इंडिया के तहत भारत भी एशिया का सबसे बड़ा मैन्युफैक्चरिंग हब बने। यह विडंबना है कि यह अवसर भी इस आपदा ने ही प्रदान किया है। इस प्रकार आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ाएं गए इन कदमों से और वर्तमान समय में विदेशी निवेश की संभावनाओं को देखते हुए यह निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि कोरोना काल के बाद का समय भारत के लिए स्वर्णिम काल होगा।


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