अतुल्य भारत

शराब के लिये पूरे विश्व के समक्ष देश की जनता ने अच्छा उदाहरण प्रस्तुत किया हमारी कोरोना के विरुद्ध जंग का ।
करोड़ो लोगों की डेढ़ महीने की मेहनत, प्रिय प्रधानमंत्री जी का राष्ट्र से बार बार हाथ जोड़ कर नम्म्र निवेदन, कि सोशल डिस्टेंसिंग, लाकडाउन नियमों का पालन करें,आने वाली आर्थिक मंदी की चिंता, परिवार के लिये संसाधन जुटाने के प्रयास, और तो और इस भयावह बीमारी का डर भी ताक पर रख दिया, लोगों की शराब की तलब ने।
    इस बात के लिये जनता से ज़्यादा इस बार सरकार ज़िम्मेदार है। ऐसी भी क्या  विवशता आन पड़ी सरकार पर? जो पैसा लोग परिवार की आवश्यकताओं पर व्यय कर सकते थे, उसका बड़ा हिस्सा शराब इकठ्ठी करने में लगा दिया.....
पीना न पीना निजी पसंद की बात है, यहाँ वो मुद्दा नहीं , परंतु इतने दिनों में बिना शराब के तो कोई नहीं मरा या बीमार पड़ा, तो फिर ?
   सरकार की ओर से मीडिया का यह तर्क, कि राज्यों की माँग थी, क्योंकि राजस्व बहुत घट रहा था अत्यन्त निरर्थक लगता है .... जब महामारी रोकने के लिये पूरी अर्थ व्यवस्था को दाँव पर लगा दिया गया, सरकार ने इतना घाटा वहन किया सिर्फ लोगों की जान बचाने के लिये, तो फिर इतनी मेहनत को चंद घंटों में बेकार क्यों होने दिया गया? कुछ तो है जो दिख नहीं रहा।
     
       अब इस तस्वीर का दूसरा रुख  ..........


   * पाकिस्तान द्वारा हमलों में पिछले कुछ दिनों में हमारे कई बहादुर जवान शहीद हुये । विश्व की बड़ी शक्तियों में हमारी गिनती है, हथियार खरीदने में हज़ारों करोड़ रुपये लगाये गये हैं, फिर भी लगातार हमलों में सैनिक शहीद हो रहे हैं और दुश्मन को जवाब देना तो दूर,इसकी निंदा तक नहीं हुई । बड़ी बेशर्मी से इस नाकामी को मीडिया ने ढक दिया।
यदि राजनीतिक आवश्यकता होती तो हर चैनल और सोशल मीडिया पर सिर्फ शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती और पाकिस्तान को मुँह तोड़ जवाब देने की बात होती। परंतु मीडिया को इस समय इस मुद्दे से टी आर पी नहीं मिलेगी , इसलिये शहीदों की उपेक्षा हुई।


* तेल की खपत न के बराबर है, फिर भी दाम बढ़ा दिये गये रातोंरात। निजी वाहन तो हैं नहीं सड़क पर, सरकारी वाहन, मजदूरों छात्रों को लाने वाली बसों, ट्रेनों के अलावा सिर्फ किसान ही हैं जिनको फसल काटने, बेचने इत्यादि के लिये ट्रैक्टर, थ्रेशर, हारवेस्टर की आवश्यकता पड़ेगी जो डीज़ल से चलते हैं !!!! तो किसपर आयेगा ये बोझ??? किसान पहले ही परेशान है और उसपर ये समस्या.... ये मुद्दा भी नहीं उठा कहीं, शराब का ही सुरूर रहा।


* देश भर में बेहाल प्रवासी मजदूरों की हालत और शिकायत भी दब गई, क्योंकि सरकार इनको न खिला पा रही है, ना घर भेज पा रही है


* जो तब्लीगी जमात वाले रातोंदिन मीडिया पर छाये थे, कोरोना फैलाने से लेकर स्वास्थ्य, सफाई, पुलिस कर्मियों पर हमले को लेकर, वो अचानक ग़ायब हैं ???? क्यों?? क्या अब उनसे खतरा नहीं??? या फिर खाड़ी और सात समुंदर पार के आकाओं ने नाराज़गी जताई कि समुदाय विशेष को बदनाम करना बंद करो, और साथ ही भारतीयों को वापस भेजना भी शुरु किया तो यहाँ फटाफट कहानी की पटकथा बदली गई, चंद घंटों में एक दूसरा भारत दिखने लगा मीडिया के सौजन्य से।


ये मुख्य कारण हैं कि रातों रात मीडिया पर जमातियोंके बजाय शराबी छा गये । ऐसा प्रतीत होता है मानो कोई कबड्डी का मैच चल रहा है .... पहला राउंड .... मीडिया जीता जमातियों से..... दूसरा राउंड...... जमाती जीते शराबियों से दोनों ही सूरतों में देश ही हारा।


और हार गई उन करोड़ों भारतीयों की मेहनत जो घर में बंद हैं ४० दिन से, जिनको ये नहीं पता आगे खाने को मिलेगा या नही, वो छोटे व्यापारी जो किसी तरह अपने लिये काम करने वालों की तनख्वाह दे रहे हैं, वो लोग जिनके परिवार का कोई सदस्य, दूर कहीं फँसा हुआ है, घर आने की राह देख रहा है,सभी लोग जो चिंता और भय के माहौल में इस आस में जी रहे हैं कि हम मिलकर करोना को हरा देंगे और सब ठीक हो जायेगा और चंद घंटों में जैसे सैलाब आ गया और सबकी मेहनत बहा ले गया ।
ऊपर से सोशल मीडिया पर शराबियों को “ करोना वारियर” कहने वाले मैसेज। क्या हमारे असली ‘ करोना वारियर’ स्वास्थ्य, सफाई, पुलिस कर्मियों का अपमान नहीं??? एक तमाचे जैसा है ये मजाक।


जो लोग शराब पीकर हंगामा करने वालों के बेहूदा विडियो देखकर हंस रहे अथवा आगे भेज रहे हैं, वो  मूर्ख ये नहीं समझ रहे कि खुद का ही मज़ाक बना रहे हैं ! 
वही लोग अब मीडिया को गाली देंगे, जिनके मन की बात ही करता है मीडिया.....


      अब जब मीडिया ही सरकार का प्रवक्ता बना हुआ है, तो आगे कैसे तर्क देखने व सुनने को मिलेंगे इसका भी अंदाज़ा लगाया जा सकता है । विद्वानों के कुछ ऐसे तर्क होंगे .......


* कैसे हज़ारों  करोड़ रुपये आ गये सरकारी खज़ाने में,शराब की बिक्री से अर्थ व्यवस्था में सुधार।


* सरकार ने कैसे , इस पैसे का सदुपयोग जन कल्याण, देश के विकास  के लिये किया।


* शराब मिलने पर शांत हुये लोग, घरेलू हिंसा के मामले कम हुये ।


* कल से तो कोरोना के केस भी कम होने लगें ( मीडिया पर) शायद।


* डेढ़ महीने की बंदी के बाद भी लोगों के पास इतना पैसा है, मतलब कोई भूखा नहीं मर रहा, बेरोज़गारी, ग़रीबी नहीं है, सब खुशहाल हैं।


* कोई बड़ी बात नहीं कि देश में अब शराबी भी रक्षकों की श्रेणी में गिन ने लगें स्वयं को, अर्थ व्यवस्था के रक्षक !!!!!
....... मुमक़िन है 
आगे इंतज़ार कीजिये धारावाहिक “ सब चंगा सी” के अगले एपिसोड का .....


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