इसलिए चुप हूं....


शोर करना नहीं है मेरा काम इसलिए चुप हूं।

जल्दी सुलग उठता है मेरा नाम इसलिए चुप हूं।।



गुलामों की कलमें बगावत नहीं लिखती

आका की अपने हिमाकत नहीं लिखती

शान ए सल्तनत में बस गढ़ती हैं कसीदें

महलों की सच्ची वो हालत नहीं लिखती

दरबारी चरागों से रौशन है मेरी शाम इसलिए चुप हूं।

जुबां पर है मेरे हाकिम का लगाम इसलिए चुप हूं ।।



दिखता है मुझको भी पीछे का मंजर

रियासत की गर्दन सियासत का खंजर

मुट्ठी भर हांथो में उपजाऊ मिट्टी

नंगी आबादी ज़मीं बाकी बंजर

महंगे मयकदे में मुफ्त का है जाम इसलिए चुप हूं।

थाली की रोटी छीन ले ना कलाम इसलिए चुप हूं।।



नून और रोटी का खाना भी देखा

ऑक्सीजन बिना मर जाना भी देखा

फुटपाथ पर चढ़ती गाड़ी भी देखी

कातिल का फिर छूट जाना भी देखा

दरिंदों के हांथों देखी जलती हुई बेटी

पिता की चिता पर मुस्काना भी देखा

बेबस किसानों का लटकता बदन

सैनिक का उठता जनाजा भी देखा

देखी है सूखे की मार भी मैंने

बाढ़ों में बहता घराना भी देखा

जम्हूरियत की दलाली भी देखी

चारे और कोयले का घोटाला भी देखा

सब लिखा तो हो जाऊंगा बदनाम इसलिए चुप हूं।

अब कौन गंवाए अपना आराम इसलिए चुप हूं।।



फर्जी डिग्री की मैंने पढ़ाई भी देखी

टेबल के नीचे की कमाई भी देखी

जिस्म के बाजारों के ताबूतों से कमरों में

सफेद पोशों की काली परछाई भी देखी

देखा है कचरे पे फेंका हुआ बचपन

हवस पर शराफत की तुरपाई भी देखी

जमाने के जगमग तमाशे के पीछे

ग़रीबी की गदली स्याही भी देखी

एक थाली में देखा कौमों के रहबरों को

उन कौमों की खूनी लड़ाई भी देखी

पाखंड देखा है मैंने मजहबों का

लुटेरों के हाथों की सफाई भी देखी

देखी है कौड़ी में बिकती ज़मीरें

खुली शर्मगाह की नुमाइश भी देखी

भीड़ को बनते देखा है मैंने अदालत

न्यायालय की होती रुसवाई भी देखी

आंगन में देखी है खिंचती दीवारें

बुजुर्गों की पथराती निगाहें भी देखी

अमीरों की मैंने डकारें सुनी हैं

भूख से मरने वालों की आहें भी देखी

और क्या देखना रह गया ज़िन्दगी में

सड़क पर भटकती बिलखती दुआएं भी देखी

ये देखने वालों का होता है बुरा अंजाम इसलिए चुप हूं।

मिला है सच को यहां कब ऊंचा मुकाम इसलिए चुप हूं।।



इसलिए बस चमकते शरारे मैं लिखता हूं

नदी और पर्वत के नजारे मैं लिखता हूं

सुने है जो अब तक मुहब्बत के किस्से

वही बस सारे के सारे मैं लिखता हूं

मत समझना सच बोलना चाहता नहीं हूं

पर चाहकर भी सच बोल पाता नहीं हूं

ऐसा नहीं के मुंह में नहीं है जुबान इसलिए चुप हूं।

जुबां पर है मेरे हाकिम का लगाम इसलिए चुप हूं।।



शोर करना नहीं है मेरा काम इसलिए चुप हूं।

जल्दी सुलग उठता है मेरा नाम इसलिए चुप हूं।।



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