निशाने पर महिला हो तो निखर कर आता है समाज और मीडिया का असली रूप
महिला सशक्तीकरण और समानता के लाख दावे किए जाएं पर सामाजिक वास्तविक्ता बहुत ही भयावह है। निशाने पर महिला हो तो समाज बिना तथ्य उसके चरित्र पर लांछन लगाने में एक पल की चूक नहीं करता। सुशांत सिंह राजपुरा केस में रिया चक्रवर्ती मुख्य अभियुक्त के तौर पर देखी जा रहीं हैं। CBI से ले कर तमाम जांच एजेंसियां लगातार उनसे पूछताछ कर रही हैं। उनका निष्कर्ष कुछ निकले पर हमारा समाज और मीडिया रिया को पहले ही दोषी मान चुका है। वास्तव में उन्हें कुछ प्रमुख टीवी एंकरों और सोशल मीडिया के ट्रोल्स ने बिना किसी आरोप के दोषी ठहरा दिया है। पक्की खबर पर आधारित रिपोर्टिंग के बजाए मीडिया के एक बहुत बड़े हिस्से ने इसे हाई वोल्टेज ड्रामे में बदल दिया है और एक 28 वर्षीय की महिला के खिलाफ जज की भूमिका अदा कर दिया। तमाम तरह के सवालों के बीच रिया के चरित्र का भी विश्लेषण खुले आम सोशल मीडिया पर हो रहा है। खुले आम उनके चरित्र पर ऊँगली उठाई जा रही है और अलग अलग लोगों के साथ उनके सम्बन्ध जोड़े जा रहे हैं। जिस तरह से रिया चक्रवर्ती के चरित्र पर हमला कर उन्हें तरह तरह से मनसिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा है क्या वो किसी महिला पर होने वाले किसी अपराध से कम है ?
सुशांत केस में सभी ने अपना-अपना पक्ष टीवी चैनलों के समक्ष रखा। काफी समय के बाद अपना पक्ष रखने के लिए रिया चक्रवर्ती ने भी कुछ इंटरव्यूज दिए जिसमे रिया अपना पक्ष काफी मजबूती से रखते हुए नजर आईं। सोशल मीडिया पर उनके इंटरव्यूज को खूब टारगेट किया गया। लोगों ने उसको स्क्रिप्टेड और नाटकीय बताया। पर पौने दो घंटे पूरे कॉन्फिडेंस के साथ मीडिया का सामना करना किसी नाटक का हिस्सा नहीं हो सकता। रिया चक्रवर्ती पर अभी तक कोई आरोप सिद्ध नहीं है, और हमारा कानून कहता है कि जब तक आरोप सिद्ध न हो जाए तब तक हर किसी को अपना पक्ष रखने का हक है। तो रिया चक्रवर्ति को क्यों नहीं ?
सभी इंटरव्यूज में रिया अपना पक्ष मजबूती से रखते हुए कई सारी बेवजह की कॉन्सपिरेसी थ्योरीज की रीढ़ तोड़ती हुई नजर आती हैं। साथ ही वे कुछ ऐसे सवाल भी उठाती हैं जो तर्कसंगत हैं और सीबीआई के लिए आगे की दिशा तय कर सकते हैं। सुशांत के परिवार से उनके रिश्ते को लेकर भी रिया ने हर सवाल का जवाब बड़े स्पस्ट शब्दों में दिया। हलांकि कुछ सवालों का जवाब संतोषजनक नहीं रहा पर काफी महत्वपूर्ण सवाल भी इन इंटरव्यूज में खड़े हुए। तो क्यों हमारा मीडिया और ऑनलाइन समाज रिया चक्रवर्ती की बातों को एक दूसरा पक्ष मानकर स्वीकार नहीं कर सकता ? इन इंटरव्यूज को क्यों हमारा समाज और मीडिया पचा नहीं पा रहा ? अगर रिया चक्रवर्ती दोषी हैं तो यकीनन सजा होनी चाहिए लेकिन इसका फैसला कौन करेगा, मीडिया,सोशल मीडिया, समाज या इस देश का कानून ?
समाज का स्वरुप तो हमेशा से ऐसा ही रहा है, पर मीडिया का चरित्र निश्चित तौर पर बदल गया है। याद होगा जेसिका लाल हत्याकांड, 1999 से लेकर 2006 तक समाज में जेसिका लाल के कैरेक्टर को लेकर तमाम तरह के ओछे सवाल उछाले जाते थे। लोग बात करते थे कि आखिर एक मॉडल इतनी रात गए लोगों को शराब क्यों सर्व कर रही थी। क्या किसी महिला का बार में काम करना अपराध है ? क्या वो बार में देर रात शराब सर्व कर रही है मात्रा इसी कारण उसकी हत्या हो जानी चाहिए ? ठीक उसी तरह आज रिया चक्रवर्ती को विषकन्या से लेकर डायन, काला जादू करने वाली बंगालन और अमीर बॉयफ्रेंड का पैसा हड़पने वाली गोल्ड डिगर गर्लफ्रेंड तक बोला जा रहा है। मतलब गलती किसी की भी हो चरित्र की समीक्षा महिला की ही होगी। वो तो शुक्र है तब सोशल मीडिया और आज के वक्त का उन्मादी टीवी मीडिया नहीं था। जेसिका लाल मर्डर केस में पहले तहलका और फिर एनडीटीवी ने मनु शर्मा को सजा दिलाने के लिए जेसिका की बहन सबरीना लाल का आखिर तक साथ दिया था। दिल्ली हाई कोर्ट ने 2006 में जब मनु शर्मा को उम्र कैद की सजा सुनाई थी तब मनु शर्मा के पिता विनोद शर्मा सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस में एक ताकतवर नेता थे। लेकिन उस समय का मीडिया सत्ता के खिलाफ सच के साथ पूरी मजबूती के साथ खड़ा था।
अगर रिया चकर्वर्ती दोषी हैं भी तो समाज, सोशल मीडिया और मीडिया या ये तरीका बिलकुल गलत है। और अगर सीबीआई ने उन्हें क्लीन चिट दे दिया तो क्या ये समाज और मीडिया इतने ही उन्माद के साथ उनसे खुलेआम माफ़ी मांगेगा ? किसी भी महिला को इस तरह से टारगेट करना समाज की विकृत मानसिकता और मीडिया के न्यूनतम स्तर को दर्शाता है। हमे एक बार जरूर सोचने की जरुरत है की हम किस समाज का निर्माण कर रहे हैं।
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