भारत बंद, राजनीतिक दलों का समर्थन, हस्तियों मे अवार्ड वापस

 

देश में आज का दिन काफी अहम है। नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसान संगठनों ने देशव्यापी 'भारत बंद' बुलाया है। किसानों के इस बंद को देखते हुए दिल्ली, महाराष्ट्र सहित कई राज्यों में सुरक्षा व्यवस्था काफी कड़ी कर दी गई है। 'भारत बंद' को कांग्रेस सहित विपक्षी दल ने अपना समर्थन दिया है। विपक्ष की ओर से समर्थन दिए जाने के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने विपक्ष पर तीखा हमला बोला। वहीं, सोमवार शाम हरियाणा के कुछ किसान संगठनों ने केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मुलाकात की। एक किसान संगठन ने कहा कि प्रदर्शन कर रहे किसानों को गुमराह किया गया है। किसान संगठनों द्वारा नए कृषि कानूनों के विरोध में जो आज भारत बंद बुलाया गया है, उससे कई सेवाएं बाधित हुई हैं। हालांकि किसान नेताओं ने अपने कार्यकर्ताओं से यह भी कहा कि हाल ही में लागू खेती से जुड़े कानूनों के खिलाफ बंद के लिए किसी को मजबूर नहीं किया जाए। समझा जाता है कि भारत बंद का सबसे ज्यादा असर दिल्ली एवं राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में देखने को मिलेगा। दिल्ली-एनसीआर में कई ऑटो एवं टैक्सी संघों ने मंगलवार के बंद को अपना समर्थन दिया है। एमएसपी और मंडी समिति के मुद्दे पर किसान संगठन और केंद्र सरकार आमने सामने हैं। इस विषय पर पांच दौर की बातचीत हो चुकी है लेकिन नतीजा सिफर रहा। 9 दिसंबर को दोनों पक्षों के बीच छठवें दौर की बातचीत होनी है।8 नवंबर को किसानों के भारत बंद से पहले एयर इंडिया ने अहम ऐलान किया है। एयर इंडिया का कहना है कि बंद की वजह से किसी भी यात्री को अगर असुविधा हुई तो उसके बारे में विमान करियर ध्यान देगी. केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों का किसान संगंठन विरोध कर रहे हैं। पिछले 12 दिन से किसान दिल्ली की सीमा पर डटे हुए हैं और मंगलवार को भारत बंद का ऐलान किया है। किसानों के समर्थन में अलग अलग हस्तियों मे अवार्ड वापस करने का ऐलान किया है इस सिलसिले में करीब 30 लोगों ने राष्ट्रपति भवन की तरफ कूच भी किया था। 8 दिसंबर को भारत बंद, राजनीतिक दलों का समर्थन?

कांग्रेस ने ऐलान किया है कि वह 8 दिसंबर को भारत बंद का समर्थन करेगी। पार्टी के प्रवक्ता पवन खेड़ा ने इसे राहुल गांधी के किसानों को समर्थन को मजबूत करने वाला कदम करार दिया। इसके अलावा लेफ्ट पार्टियों ने भी एक संयुक् बयान जारी कर भारत बंद का खुलकर समर्थन किया। ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (TMC), लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल (RJD), तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS), राष्ट्रीय लोकदल (RLD) ने भी राष्ट्रव्यापी बंदी का साथ देने का फैसला किया है। अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने भी बंद के समर्थन का ऐलान किया है। केजरीवाल ने एक ट्वीट में 'सभी देशवासियों से अपील की कि सब लोग किसानों का साथ दें और इसमें हिस्सा लें।'

कांग्रेस लेफ्ट पार्टियां (CPM, CPI अन्) द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (DMK) आम आदमी पार्टी (AAP) तृणमूल कांग्रेस (TMC) समाजवादी पार्टी (SP) तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS)राष्ट्रीय जनता दल (RJD)शिरोमणि अकाली दल (SAD)राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP)गुपकार गठबंधन ऑल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM)

किसानों ने भारत बंद के तहत 'दिल्ली आने वाली सभी सड़कें ब्लॉक' करने की चेतावनी दी है। टोल प्लाजाओं पर भी कब्जे की योजना है। केंद्र सरकार और कॉर्पोरेट्स के खिलाफ आंदोलन को और तेज किया जाएगा। राजनीतिक हलकों से इतर कई व्यापारिक यूनियनों और संगठनों ने भी भारत बंद का समर्थन किया है। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

ऑल इंडिया किसान संघर्ष कोऑर्डिनेशन कमिटी (AIKSCC) ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) इंडियन नैशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (INTUC) हिंद मजदूर सभा (HMS) ऑल इंडिया यूनाइटेड ट्रेड यूनियन सेंटर (AIUTUC)

सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस (CITU)ट्रेड यूनियन कोऑर्डिनेशन सेंटर (TUCC)ऑल इंडिया बैंक एम्प्लॉयीज असोसिएशन (AIBEA)ऑल इंडिया बैंकिंग ऑफिसर्स असोसिएशन (AIBOA)इंडियन नैशनल बैंक ऑफिसर्स कांग्रेस (INBOC).

 

 कृषिमंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कृषि कानूनों का समर्थन कर रहे किसानों के एक समूह से सोमवार को कहा कि नए विधानों से कृषकों और खेती-बाड़ी को लाभ होगा। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार ऐसे आंदोलनों से निपटेगी। पद्मश्री से सम्मानित कंवल सिंह चव्हान की अगुवाई में 20 'प्रगतिशील किसानों' के प्रतिनिधिमंडल ने कृषिमंत्री के साथ बैठक में कहा कि सरकार नए कृषि कानूनों के कुछ प्रावधानों को संशोधित करे लेकिन उसे (कानूनों को) निरस्त नहीं करना चाहिए। प्रतिनिधिमंडल में शामिल सदस्यों ने कहा कि वे कृषक हैं और किसान उत्पादक संगठनों के प्रतिनिधि हैं। प्रतिनिधिमंडल में भारतीय किसान यूनियन (अतर) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अतरसिंह संधू भी शामिल थेसंधू ने कहा कि हम नए कृषि कानूनों का समर्थन करते हैं। यदि हमें एमएसपी के बारे में लिखित में दे दिया जाता है तो सभी समस्याएं दूर हो जाएंगी। समूह ने यह भी कहा कि विरोध कर रहे किसानों को राजनीतिक लाभ के लिए भ्रमित किया गया है। किसान प्रतिनिधिमंडल के साथ यह बैठक 'भारत बंद' से 1 दिन पहले हुई। कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसान संगठनों ने मंगलवार को 'भारत बंद' का आह्वान किया है। हालांकि, प्रदर्शन कर रहे किसानों के प्रतिनिधियों और सरकार के बीच अगली बैठक 9 दिसंबर को प्रस्तावित है।प्रतिनिधिमंडल को संबोधित करते हुए तोमर ने कहा कि ऐसे चलेगा आंदोलन वगैरह। इससे तो निपटेंगे। आप लोग इन कानूनों का समर्थन करने के लिए पहुंचे हैं, आपका हृदय से स्वागत और धन्यवाद करता हूं। उन्होंने कहा कि इस कानून से किसान और पूरे कृषि क्षेत्र को लाभ होगा। कृषि क्षेत्र में सुधारों से गांवों में रोजगार पैदा होंगे और कृषि लाभकारी बनेगी।20 किसानों के समूह ने अपने ज्ञापन में सरकार से विरोध प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों के सुझावों के अनुसार संशोधन पर विचार करने की मांग की, हालांकि उन्होंने कानूनों को निरस्त नहीं करने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि किसान संगठनों के सुझावों पर विचार किए जाएं और कृषि कानूनों को बनाए रखा जाए। यह सुनिश्चित किया जाए कि न्यूनतम समर्थन मूल्य और मंडी व्यवस्था बनी रहे। हम आपसे कृषि कानूनों को बनाए रखने का आग्रह करते हैं।सरकार और कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों के प्रतिनिधियों के बीच 5 दौर की बातचीत हो चुकी है, लेकिन अब तक कोई सहमति नहीं बन पाई है। विरोध कर रहे किसान इन कानूनों को निरस्त ही किए जाने की मांग पर अड़े हैं। सरकार का कहना है कि ये तीनों कृषि कानून किसानों के हित में हैं। इनसे किसानों को अपनी उपज देश में कहीं भी बेचने की स्वतंत्रता मिलेगी और बिचौलियों की भूमिका समाप्त होगी।

सिलीगुड़ी। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय की कार काविंडस्क्रीनयहां भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) की एक रैली के दौरान तोड़ दिया गया।

गत पांच अगस्त को अयोध्या में भव्य एवं दिव्य राम मंदिर के लिए भूमिपूजन हो जाने के बाद यहां मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हो गया है। मंदिर निर्माण को लेकर राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास की समय-समय पर बैठकें भी चल रही हैं।राम जन्मभूमि निर्माण स्थल के नीचे मिले रेत से मंदिर ढांचे को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा : ट्रस्टी

एक्ट्रेस दिव्या भटनागर का सोमवार को निधन हो गया। कोरोना वायरस की चपेट में आने के बाद 26 नवंबर को उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया था, जहां लगातार उनकी हालत बिगड़ती जा रही थी और उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था।

फाइजर और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के बाद हैदराबाद की फार्मास्युटिकल कंपनी भारत बायोटेक ने सोमवार को अपने कोविड-19 रोधी टीके के लिए आपात उपयोग की स्वीकृति हासिल करने के लिए केंद्रीय औषधि नियामक में आवेदन किया है।

संसद की नई इमारत से जुड़े सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के शिलान्यास को सुप्रीम कोर्ट ने दी मंजूरी। कोर्ट ने यह हिदायत भी दी कि जब तक वह फैसला सुना दे, तब तक इस प्रोजेक्ट के लिए कोई तोड़फोड़ या निर्माण किया जाए। प्रोजेक्ट को गलत तरीके से पर्यावरण मंजूरी देने के आरोप में दाखिल की गई है याचिका।

तबलीगी जमात के कार्यक्रम में शामिल एक शख्स पर हत्या की कोशिश का केस दर्ज करना गलत। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यूपी पुलिस के कदम को कानून का गलत इस्तेमाल करार दिया। चार्जशीट में कहा गया था, आरोपी को पता था कि दिल्ली के कार्यक्रम में कई लोग कोरोना पॉजिटिव थे, फिर भी उसने उसमें शामिल होने की बात छिपाई।

आंध्र प्रदेश में रहस्यमय बीमारी से एक की मौत, 400 से ज्यादा लोग अस्पताल में। मिर्गी और बेहोशी जैसे लक्षणों से एलुरु कस्बे में सैकड़ों लोग बीमार। बीमारी का पता लगाने के लिए कल राज्य का दौरा करेगी केंद्र सरकार की टीम।

पीएम नरेंद्र मोदी ने आगरा में मेट्रो रेल प्रोजेक्ट के निर्माण कार्य का वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए उद्धाटन किया। कुल 29 किलोमीटर से ज्यादा के दो कॉरिडोर बनाए जाएंगे। पहले चरण में दिसंबर 2022 तक सिकंदरा से ताज ईस्ट गेट तक मेट्रो सेवा शुरू होने का अनुमान।

दुनिया भर में कोरोना का टीका बनाने की प्रक्रिया में जुटीं दवा कंपनियां अपने वैक्सीन के परीक्षण के अंतिम दौर में हैं। ब्रिटेन में टीकाकरण का अभियान शुरू होने वाला है। मॉडर्णा, फाइजर, ऑक्सफोर्ड, स्पूतनिक V टीके को लेकर काफी उम्मीदें हैं।

 12 दिन की कड़ी मशक्कत के बाद भारतीय नौसेना ने कमांडर निशांत सिंह के शव को खोज निकाला। गोवा के तट से करीब 30 मील दूर उनका शव सतह से 70 मीटर की गहराई पर बरामद किया गया। इस खोज अभियान में नौसेना ने दिन और रात एक कर दिए थे।

अगले 24 घंटों के दौरान तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश के दक्षिणी तटीय इलाकों पर गरज के साथ कई इलाकों में बौछारें जारी रहने का अनुमान है। कुछ स्थानों पर भारी वर्षा भी हो सकती है।लक्षद्वीप और दक्षिणी आंतरिक कर्नाटक में हल्की से मध्यम बारिश और गरज के साथ वर्षा होने की संभावना है।जम्मू कश्मीर, गिलगित बाल्टिस्तान, मुजफ्फराबाद, लद्दाख और हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में हल्की से मध्यम बारिश और हिमपात होने की संभावना है।उत्तराखंड में भी एक-दो स्थानों पर बारिश और हिमपात होने के आसार हैं।

  भारत का अन्नदाता किसान एक बार फिर सड़क पर है। केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा लाए गए कृषि कानूनों के खिलाफ किसान सड़क पर उतरने को मजबूर है। किसानों को डर है कि नए कानूनों से मंडिया खत्म हो जाएंगी साथ ही न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर होने वाली खरीदी भी रुक जाएगी। दूसरी ओर सरकार का तर्क इसके उलट है यानी एमएसपी पर खरीदी बंद नहीं होगी।यूं तो अलग-अलग राज्यों में किसान सरकारों के खिलाफ लामबंद होते रहे हैं। इन आंदोलनों से सत्ता के शिखर हिलते भी रहे हैं और गिरते भी रहे हैं। मध्यप्रदेश के मंदसौर में 2017 में हुए किसान आंदोलन को लोग अभी भूले नहीं होंगे, जहां पुलिस की गोली से 7 किसानों की मौत हो गई थी।15 साल बाद मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सत्ता में वापसी के लिए काफी हद तक राज्य के किसानों की भूमिका को ही अहम माना जाता है। इसी तरह कर्ज माफी और फसलों के डेढ़ गुना ज्यादा समर्थन मूल्य की मांग को लेकर तमिलनाडु के किसानों ने 2017 एवं 2018 में राजधानी दिल्ली में अर्धनग्न होकर एवं हाथों में मानव खोपड़ियां और हड्डियां लेकर प्रदर्शन किया था।ताजा आंदोलन की बात करें तो पंजाब से उठी आंदोलन की चिंगारी से अब पूरा देश धधक रहा है। हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, आंध्रप्रदेश, बिहार समेत देश के अन्य हिस्सों में भी किसान सड़कों पर उतर आए हैं। दिल्ली को तो मानो चारों ओर से आंदोलनकारी किसानों ने घेर लिया है।भारत को मिला बड़ा किसान नेता : स्व. महेन्द्रसिंह टिकैत की तो पहचान ही किसान आंदोलन के कारण थी और वे देश के सबसे बड़े किसान नेता माने जाते थे। चौधरी चरणसिंह और चौधरी देवीलाल भी किसान नेता थे, लेकिन उनकी अपनी राजनीतिक पार्टियां भी थीं, जबकि टिकैत विशुद्ध किसान नेता थे।दरअसल, 1987 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के कर्नूखेड़ी गांव में बिजलीघर जलने के कारण किसान बिजली संकट का सामना कर रहे थे। 1 अप्रैल, 1987 को इन्हीं किसानों में से एक महेंद्र सिंह टिकैत ने सभी किसानों से बिजली घर के घेराव का आह्वान किया। यह वह दौर था जब गांवों में मुश्किल से बिजली मिल पाती थी। ऐसे में देखते ही देखते लाखों किसान जमा हो गए। खुद टिकैत को भी इसका अंदाजा नहीं था। किसानों को इसके बाद टिकैत के रूप में बड़ा किसान नेता भी मिल गया और उन्हें लगा कि वे बड़ा आंदोलन भी कर सकते हैं। जनवरी 1988 में किसानों ने अपने नए संगठन भारतीय किसान यूनियन के झंडे तले मेरठ में 25 दिनों का धरना आयोजित किया। इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा मिली। इसमें पूरे भारत के किसान संगठन और नेता शामिल हुए। किसानों की मांग थी कि सरकार उनकी उपज का दाम वर्ष 1967 से तय करे। सबसे खास बात यह थी कि टिकैत अराजनीतिक किसान नेता थे, उन्होंने कभी कोई राजनीतिक दल नहीं बनाया।किसानों ने अंग्रेजों की चूलें भी हिलाई थीं : अंग्रेजों के राज में भी समय-समय पर किसानों आंदोलन हुए और उन्होंने सिर्फ स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, बल्कि अंग्रेज सत्ता की चूलें भी हिलाकर रख दी थीं। हालांकि स्वतंत्रता से पहले किसान आंदोलनों पर गांधी जी का स्पष्ट प्रभाव देखने को मिलता था, यही कारण था वे पूरी तरह अहिंसक होते थे।सन 1857 के असफल विद्रोह के बाद विरोध का मोर्चा किसानों ने ही संभाला, क्योंकि अंग्रेजों और देशी रियासतों के सबसे बड़े आंदोलन उनके शोषण से ही उपजे थे। हकीकत में देखें तो जितने भी 'किसान आंदोलन' हुए, उनमें अधिकांश आंदोलन अंग्रेजों के खिलाफ थे। देश में नील पैदा करने वाले किसानों का आंदोलन, पाबना विद्रोह, तेभागा आंदोलन, चम्पारण का सत्याग्रह और बारदोली में प्रमुख से आंदोलन हुए। इनका नेतृत्व भी महात्मा गांधी और वल्लभभाई पटेल जैसे नेताओं ने किया।दक्कन का विद्रोह : इस आंदोलन की शुरुआत दिसंबर 1874 में महाराष्ट्र के शिरूर तालुका के करडाह गांव से हुई। दरअसल, एक सूदखोर कालूराम ने किसान बाबा साहब देशमुख के खिलाफ अदालत से घर की नीलामी की डिक्री प्राप्त कर ली। इस पर किसानों ने साहूकारों के विरुद्ध आंदोलन शुरू कर दिया। खास बात यह है कि यह आंदोलन एक-दो स्थानों तक सीमित नहीं रहा वरन देश के विभिन्न भागों में फैला।एका आंदोलन : यह आंदोलन उत्तर प्रदेश से शुरू हुआ। होमरूल लीग के कार्यकताओं के प्रयास तथा मदन मोहन मालवीय के मार्गदर्शन के परिणामस्वरूप फरवरी 1918 में उत्तर प्रदेश में 'किसान सभा' का गठन किया गया। 1919 के अंतिम दिनों में किसानों का संगठित विद्रोह खुलकर सामने आया। इस संगठन को जवाहरलाल नेहरू ने अपने सहयोग प्रदान किया। उत्तर प्रदेश के हरदोई, बहराइच एवं सीतापुर जिलों में लगान में वृद्धि एवं उपज के रूप में लगान वसूली को लेकर यह आंदोलन चलाया गया।मोपला विद्रोह : केरल के मालाबार क्षेत्र में मोपला किसानों द्वारा 1920 में विद्रोह किया गया। प्रारम्भ में यह विद्रोह अंग्रेज हुकूमत के ख़िलाफ था। महात्मा गांधी, शौकत अली, मौलाना अबुल कलाम आजाद जैसे नेताओं का सहयोग इस आंदोलन को प्राप्त था। हालांकि 1920 में इस आंदोलन ने हिन्दू-मुस्लिमों के मध्य सांप्रदायिक आंदोलन का रूप ले लिया और बाद में इसे कुचल दिया गया।कूका विद्रोह : सन 1872 में पंजाब के कूका लोगों (नामधारी सिखों) द्वारा किया गया यह एक सशस्त्र विद्रोह था। कृषि संबंधी समस्याओं तथा अंग्रेजों द्वारा गायों की हत्या को बढ़ावा देने के विरोध में यह विद्रोह किया गया था। बालक सिंह तथा उनके अनुयायी गुरु रामसिंह जी ने इसका नेतृत्व किया था। कूका विद्रोह के दौरान 66 नामधारी सिख शहीद हो गए थे।

रामोसी किसानों का विद्रोह : महाराष्ट्र में वासुदेव बलवंत फड़के के नेतृत्व में रामोसी किसानों ने जमींदारों के अत्याचारों के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल फूंका था। इसी तरह आंध्रप्रदेश में सीताराम राजू के नेतृत्व में औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध यह विद्रोह हुआ, जो 1879 से लेकर 1920-22 तक छिटपुट ढंग से चलता रहा।तेभागा आंदोलन : किसान आंदोलनों में 1946 का बंगाल का तेभागा आंदोलन सर्वाधिक सशक्त आंदोलन था, जिसमें किसानों ने 'फ्लाइड कमीशन' की सिफारिश के अनुरूप लगान की दर घटाकर एक तिहाई करने के लिए संघर्ष शुरू किया था। बंगाल का तेभागा आंदोलन फसल का दो-तिहाई हिस्सा उत्पीड़ित बटाईदार किसानों को दिलाने के लिए किया गया था। यह आंदोलन बंगाल के करीब 15 जिलों में फैला, विशेषकर उत्तरी और तटवर्ती सुंदरबन क्षेत्रों में। इस आंदोलन में लगभग 50 लाख किसानों ने भाग लिया। इसे खेतिहर मजदूरों का भी व्यापक समर्थन प्राप्त हुआ।ताना भगत आंदोलन : लगान की ऊंची दर तथा चौकीदारी कर के विरुद्ध ताना भगत आंदोलन की शुरुआत 1914 में बिहार में हुई। इस आंदोलन के प्रवर्तक 'जतरा भगत' थे। मुण्डा आंदोलन की समाप्ति के करीब 13 वर्ष बाद ताना भगत आंदोलन शुरू हुआ था।तेलंगाना आंदोलन : आंध्रप्रदेश में यह आंदोलन जमींदारों एवं साहूकारों के शोषण के खिलाफ 1946 में शुरू किया गया था। 1858 के बाद हुए किसान आंदोलन का चरित्र पूर्व के आंदोलन से अलग था। अब किसान बगैर किसी मध्यस्थ के स्वयं ही अपनी लड़ाई लड़ने लगे। इनकी अधिकांश मांगें आर्थिक होती थीं।बिजोलिया किसान आंदोलन : यह किसान आंदोलन भारत भर में प्रसिद्ध रहा जो मशहूर क्रांतिकारी विजय सिंह पथिक के नेतृत्व में चला था। बिजोलिया किसान आंदोलन 1847 से प्रारंभ होकर करीब अर्द्ध शताब्दी तक चलता रहा। किसानों ने जिस प्रकार निरंकुश नौकरशाही एवं स्वेच्छाचारी सामंतों का संगठित होकर मुकाबला किया वह इतिहास बन गया।अखिल भारतीय किसान सभा : 1923 में स्वामी सहजानंद सरस्वती ने 'बिहार किसान सभा' का गठन किया था। 1928 में 'आंध्र प्रांतीय रैय्यत सभा' की स्थापना एनजी रंगा ने की। उड़ीसा में मालती चैधरी ने 'उत्कल प्रान्तीय किसान सभा' की स्थापना की। बंगाल में 'टेनेसी एक्ट' को लेकर 1929 में 'कृषक प्रजा पार्टी' की स्थापना हुई। अप्रैल, 1935 में संयुक्त प्रांत में किसान संघ की स्थापना हुई। इसी वर्ष एनजी रंगा एवं अन्य किसान नेताओं ने सभी प्रांतीय किसान सभाओं को मिलाकर एक 'अखिल भारतीय किसान संगठन' बनाने की योजना बनाई।नील विद्रोह (चंपारण सत्याग्रह) : नील विद्रोह की शुरुआत बंगाल के किसानों द्वारा सन 1859 में की गई थी। दूसरी ओर, बिहार के चंपारण में किसानों से अंग्रेज बागान मालिकों ने एक अनुबंध करा लिया था, जिसके अंतर्गत किसानों को जमीन के 3/20वें हिस्से पर नील की खेती करना अनिवार्य था। इसे 'तिनकठिया पद्धति' कहते थे। जब 1917 में गांधी जी इन विषम परिस्थितियों से अवगत हुए तो उन्होंने बिहार जाने का फैसला किया। गांधी जी मजरूल हक, नरहरि पारीख, राजेन्द्र प्रसाद एवं जेबी कृपलानी के साथ बिहार गए और ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अपना पहला सत्याग्रह प्रदर्शन किया।खेड़ा सत्याग्रह : चंपारण के बाद गांधीजी ने 1918 में खेड़ा किसानों की समस्याओं को लेकर आंदोलन शुरू किया। खेड़ा गुजरात में स्थित है। खेड़ा में गांधीजी ने अपने प्रथम वास्तविक 'किसान सत्याग्रह' की शुरुआत की। खेड़ा के कुनबी-पाटीदार किसानों ने सरकार से लगान में राहत की मांग की, लेकिन उन्हें कोई रियायत नहीं मिली। गांधीजी ने 22 मार्च, 1918 को खेड़ा आन्दोलन की बागडोर संभाली। अन्य सहयोगियों में सरदार वल्लभभाई पटेल और इन्दुलाल याज्ञनिक थे। बारदोली सत्याग्रह : सूरत (गुजरात) के बारदोली तालुका में 1928 में किसानों द्वारा 'लगान' अदायगी का आंदोलन चलाया गया। इस आंदोलन में केवल 'कुनबी-पाटीदार' जातियों के भू-स्वामी किसानों ने ही नहीं, बल्कि सभी जनजाति के लोगों ने हिस्सा लिया। इस आंदोलन का नेतृत्व सरदार पटेल ने किया था।



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