मराठवाड़ा के आंबेडकरी जलसाकार

 

"मराठवाड़ा के आंबेडकरी जलसाकार" संस्कृति की अमूल्य थाती



     डाॅ.बाबासाहब भीमराव आंबेडकर का जीवन चरित्र सबके लिए प्ररेणास्पद हैं। भारत में मूर्त्ति- पूजा, व्यक्ति-पूजा का सिलसिला सदियों से चला आ रहा हैं। यह पूजा भाव, भारतीय जनमानस की प्रकृति बन गई, जिसने किसी समूह या समाज का भला किया। उसको भगवान मानकर पूजना आरंभ कर दिया। लेकिन जिससे पार पाना मुश्किल हो, जिससे खुद के जीवन को खतरा हो, या फिर जिसका डर मन में बैठ गया हो, उसकी पूजा आरंभ हो गई। जिसकी पूजा की उसके गीत गाए, आरती उतारी और जयकारे लगाए। हाॅ॑! कुछ समाजों ने अपने अलग देव-भगवान और शत्रु भी खड़े कर लिए। राजे-महाराजे तो पूजे ही गये, गुंडे आततायी भी पूजे जाने लगे। कहने का अभिप्राय कुछ यही है कि, जिससे व्यक्ति, समाज का स्वार्थ पूरा हुआ, उसकी आरती उतारी, जयकारे लगाए। अपने- अपने कुल देवता गढ़ लिए गए लेकिन एक दूसरे के आराध्य को लेकर आपसी संघर्ष और शत्रुता भी बढ़ती गई। जिसकी आराधना हम करें, ज़रुरी नहीं कि दूसरा भी उसकी आराधना करें ही बल्कि एक दूसरे के आराध्य को नीचा दिखाने, अपूज्य बताने तथा शत्रु घोषित करने के लाखों जतन किए गये। ऐसे इष्ट देव बहुत ही कम हुए, जिनको सबने समान रूप से पूजा हो,सम्मान दिया हो, अपना उध्दारकर्ता माना हो। हाॅ॑! अपने आराध्य को दूसरे पर थोपने की कोशिश लगातार होती रही हैं, इसको लेकर युद्ध तक हुए हैं। किसी के आराध्य इंन्द्र हुए, किसी के ब्रम्ह-विष्णु और महेश हुए तो किसी के आराध्य बुद्ध हुए, ईसा हुए मोहम्मद हुए तो किसी के गुरुनानक।किसी के आराध्य महिषासुर हुए तो किसी के बिरसा मुंडा तो किसी के कबीर, किसी के आराध्य ज्योतिबा फुले हुए, किसी के आराध्य शिवाजी और किसी के आराध्य डाॅ.बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर हुए तो किसी के आराध्य गांधी।

     हम यहाॅ॑ चर्चा कर रहे हैं, मूक मानवता के प्रहरी, दलित, आदिवासी और स्त्रियों के मसीहा  डाॅ.भीमराव आंबेडकर साहब की। बीसवीं सदी में जिसके ज्ञान की पताका सारे संसार में फहराती रहीं।उसमहामानव को उनके अनुयायियों ने सम्मान के साथ 'बाबासाहब' कहा और उनके ही नाम पर ''जयभीम'' का अभिवादन आरंभ हुआ। उन्हें उनके मानने वालों ने 'बोधिसत्व' की उपाधि से विभूषित किया। भारत सरकार ने उन्हें 'भारत रत्न' से अलंकृत कर कृतज्ञता प्रकट की। कुछ ने उन्हें 'विश्वरत्न' तथा अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उनको 'ज्ञान का प्रतीक' कहा। बाबासाहब को विश्व भर श्रध्दा पूर्वक स्मरण किया जाता हैं। उनके नाम के साथ दर्जनों विशेषण जोड़े गए पर उनके मानने वालों का मन नहीं भरा। वे अपने अनुयायियों के लिए करुणा के सागर, प्रज्ञा सूर्य, मूक मानवता के रक्षक, आधुनिक भारत के निर्माता, संविधान के अमर शिल्पी, दलित मसीहा बने हुए हैं। बाबासाहब को चाहने वालों में वे सभी शामिल हैं, जिनकी समानता और बंधुता में आस्था हैं, जिन्हें मानवाधिकारों की समझ है, जो शोषित-पीड़ित मानवता के लिए संघर्ष कर रहे हैं और जो भारत को ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में शिखर पर देखने के लिए आतुर हैं। बाबासाहब का व्यक्तित्व वैश्विक हैं, उनकी कीर्त सब तरफ़ फैली है पर महाराष्ट्र में उनके प्रति जो सम्मान, जो दीवानगी और श्रद्धाभाव हैं, वह सर्वोपरि हैं।  बाबासाहब की जयंती महाराष्ट्र में पूरे अप्रैल भर मनाई जाती हैं। उनके नाम पर कव्वाली के मुकाबले आयोजित होते हैं, संगीत की महफिलें सजती हैं, रतजगे होते हैं, और तो और किसी के घर बच्चा जन्मा हो तो उनके नाम से सोहर गीत गाएॅ॑ जाते हैं। जन्मदिन,नामकरण संस्कार, शादी-ब्याह आदि अवसरों पर बाबासाहब के नाम पर गायक मंडली बुलाई जाती हैं। कुछ पेशेवर भीम गीत गायक तथा कुछ स्वत:स्फूर्त गायक-कवि- लोककलाकार हर मंगलमय अवसर पर अपने- अपने तरीके से बाबासाहब को स्मरण करते हैं, उनके जसगीत गाते हैं। ऐसे प्रख्यात कलाकार, लोकगायक, लोकमंडली, नाट्य मंडली कितनी हैं? कौन हैं यह गायक ? इसका विधिवत अध्ययन भी हुआ है। ऐसा ही एक अध्ययन यू.जी.सी.के सौजन्य से प्राप्त अनुदान पर किया गया।लोकगायकों का संकलन और उनके योगदान को विषय बनाकर अध्ययन किया गया हैं,यह अध्येता है- प्रख्यात आंबेडकरवादी विचारक और हिंदी मराठी के चर्चित प्रवक्ता डाॅ.इंगोले एम.डी.। प्रस्तुत लघु शोध परियोजना 'मराठवाडा के आंबेडकरी कवि-गायकों का सर्वेक्षणात्मक एवॅ॑ विश्लेषणात्मक अध्ययन', "आंबेडकरी जलसाकार" शीर्षक से आशा प्रकाशन, कानपूर के सौजन्य से पुस्तकाकार छपकर आ रही है। मुझे इस पुस्तक की अनुशंसा लिखने का सुअवसर मिला है, इसके लिए मैं अपनी ओर से डाॅ.एम.डी.इंगोले के प्रति आभार प्रकट करता हूॅ॑। मैंने बाबासाहब के विषय में अब तक जो कुछ पढ़ा-लिखा, सोचा- समझा हैं, उसके अनुसार अपनी बात रखने की कोशिश करुॅ॑गा।

     बाबासाहब के नाम पर जितने भी विश्वविद्यालय खुले हैं, जितने भी सेमिनार हुए हैं, जितनी शोध परियोजनाएॅ॑ और शोधकर्ता हुए हैं, जितने संगठन और दल बने हैं, उतने किसी अन्य नेता-राजनेता तथा महापुरुष के नाम पर नहीं बनें हैं। जिस समर्पित भाव से बाबासाहब को उनके अनुयायी याद करते हैं, जिस तरह उनके जयंती समारोह आयोजित करते हैं, वह अनुपम हैं। दुनिया भर में सर्वाधिक मूर्तियाॅ॑ तथागत गौतम बुद्ध की लगी हैं और भारत में बुध्द के बाद हमारे बाबासाहब की मूर्तियॉ॑ गॉ॑व- देहात तक लगी मिलेगी। बाबासाहब व्यक्ति-पूजा

और मूर्ति-पूजा को अच्छा नहीं मानते थें पर उनके अनुयायियों ने फिर भी बाबासाहब को पूजा भी और मूर्ति भी स्थापित की। क्योंकि हम वृहद समाज को मूर्त्तियों-मंदिरों से सदियों तक दूर रखा गया। यही कारण है कि, हम समाज में अपने इष्ट बाबासाहब को हर चौक-चौराहे पर खड़ा कर दिया। इसकी मुख्य वजह यह है कि, एक बहुत बड़े समुदाय को बाबासाहब ने मनुष्य के रूप में गरिमा दिलाई। उन्होंने अपने समुदाय और देश के लिए अकेले ही इतना काम किया कि, जिसकी तुलना किसी से भी नहीं की जा सकती हैं। जो कार्य तथाकथित देवी-देवताओं तथा भगवान नहीं कर पाया वह सब कुछ बाबासाहब ने अपने संघर्ष से करके दिखा दिया। यही कारण है कि, उनके गीत गाए जा रहे हैं, गायक मंडली और कवि-लेखक तथा बुद्धिजीवी उनका गुणगान कर रहे हैं। प्रा.डाॅ.एम.डी.इंगोले ने 'मराठवाड़ा' को केंद्र में रखकर यह शोध परियोजना प्रस्तुत की है। उनके सर्वेक्षण के अनुसार मराठवाड़ा के मुख्य गायक कलाकारों में रघुनाथ तलवारे, नरेंद्र कांबळे, अर्जुन एंगडे, आशा जोंधळे, सुनिता किर्तने, कांताबाई मनेरे, वंदना बोरसे, भारती राऊत, मोहन जोंधळे, लोभाजी थोरात, डाॅ.  अशोक जोंधळे, शिवाजी सुगंधे, अंकुश वाटुरे, शिवाजी कांबळे, काशिनाध उबाळे, नामदेव ढेपे, नामदेव लहाड़े, गोपाल एंगडे, आशा गायकवाड़, बबन दीपके, दिनकर लोणकर, सदानंद मुळे, मारोती सोनवणे, सुभाष गवळी, प्रकाश दांडेकर, कविता खांडे, उषा सरवदे, गोविंद भारशंकर, मेसाजी गायकवाड़, संजय खंडागळे, अभिमन्यु सोनटक्के, दत्ता शिंदे, पद्मिनबाई बडवे, विजयानंद परघने, ललकार बाबू, बापूराव जमदाडे, श्रीपति ढोले, भीमराव जमदाडे जैसे और भी दर्जनों लोक गायक, गायिकाएॅ॑ शामिल हैं। मराठवाड़ा के हिंदी गीतों संकलन भी इस पुस्तक में एक पृथक अध्याय में दिया गया है। इसमें बुद्ध वंदना, भीम महिमा, भीम गाथा तथा बाबासाहब के जीवन से जुड़ी तमाम घटनाओं का उल्लेख मिलता हैं। पाठकों को यह पुस्तक यकीनन पसंद आएगी। क्योंकि इसमें मराठवाड़ा के उन सभी ख्यातनाम गायकों को शामिल किया गया हैं, जिन्हें वे मंचों पर सुनते आए हैं। बाबासाहब के जीवन चरित्र को कवियों, शायरों और गायकों ने अपने-अपने तरीके से सृजित कर; जनता को शिक्षित-प्रशिक्षित, जागृत किया हैं। "यह आंबेडकरी संस्कृति की थाती है", जिसे हमें सुरक्षित रखकर भावी पीढ़ी को सौंपना है। 'आंबेडकर कल्चर' हमें मानवतावाद से जोड़ता है। बाबासाहब के जीवन संघर्ष को अनेक हिंदी-मराठी तथा अन्य भारतीय भाषाओं के कवियों ने काव्य के माध्यम से सृजित किया हैं। बाबासाहब पर अनेक नाटक, खंडकाव्य, महाकाव्य लिखे गए हैं। इसके साथ ही बाबासाहब के व्यक्तित्व और कृतित्व को केंद्र में रखकर अनेक टेलीविजन धारावाहिक, फिल्म तथा वृत्त चित्र बनाए गए हैं। अभी स्टार भारत के टेलीविजन पर 'एक महानायक डाॅ.भीमराव आंबेडकर' सीरियल आरंभ हुआ है, जबकि एक 'एक महानायक बाबासाहब डाॅ.भीमराव आंबेडकर' एक टी.वी. चैनल पर प्रसारित हो रहा है, जिसे पूरे देश में लोकप्रियता मिल रही हैं। मैं लखनऊ विश्वविद्यालय से हिंदी विषय में बाबासाहब के जीवन पर आधारित महाकाव्यों पर पीएच.डी. उपाधि हेतु शोधकार्य करा रहा हूॅ॑। विनय कुमार यह शोध कार्य बड़ी ही लगन से कर रहा है।  बाबासाहब का जीवन चरित्र बहुत ही प्रेरक, मानवीय और कारुणिक है कि, जो भी इसको पढ़ता-सुनता हैं, वह बाबासाहब का मुरीद हो जाता है। बाबासाहब जैसा किरदार भारत के लिए ही नहीं वल्कि विश्व के लिए भी एक प्ररेणा हैं। यही कारण है कि, कवियों, गायकों तथा संवेदनशील व्यक्तियों के लिए बाबासाहब का जीवन सहज ही आकर्षित कर लेता हैं। मैंने डाॅ.इंगोले की इस किताब को पढ़ते हुए बाबासाहब से जुड़ाव महसूस किया हैं, महसूस किया है उन गायकों की स्वर लहरियों को जो बाबासाहब के चरित्र का गीतों के माध्यम से गायक प्रस्तुत करते हैं। मेरी इच्छा है कि, संपूर्ण महाराष्ट्र तथा भारत के गायकों तथा आंबेडकरी कवियों का सर्वेक्षण किया जाए,जिसनेबाबासाहब की लोकप्रसिद्धि जन-जन तक पहुॅ॑चा सकेंगी। मैं अपनी ओर से डाॅ.इंगोलेजी को इस सर्वेक्षणात्मक कृतित्व के लिए हार्दिक बधाई देता हूॅ॑ और पाठकों, शोधार्थियों तथा अंबेडकरवादियों को इस पुस्तक को पढ़ने का आमंत्रण देता हूॅ॑। सबको सादर जयभीम।

             प्रो. डाॅ. कालीचरण स्नेही,

                   पी.एचडी. डी.लिट,

                          (हिंदी विभाग)

        

 लखनऊ विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश।राजधानी के प्रत्येक बाजार में व्यापारियों को किया जाए संगठित.   संदीप बंसल



 लखनऊ -अखिल भारतीय उद्योग व्यापार मंडल एवं उत्तर प्रदेश युवा उद्योग व्यापार मंडल के राजधानी लखनऊ के कोर कमेटी के प्रमुख पदाधिकारी की बैठक को संबोधित करते हुए संगठन अध्यक्ष संदीप बंसल ने कहा कि लखनऊ के प्रत्येक बाजार में व्यापारियों को संगठित किया जाए। संदीप बंसल ने कहा कि एकजुट समाज ही अपने सम्मान की रक्षा कर सकता है और समस्याओं का निराकरण कर सकता है इसलिए कोई भी क्षेत्र बाकी ना रहे जहां पर संगठन ना हो उन्होंने कोर कमेटी के पदाधिकारी को क्षेत्रवार संगठन की जिम्मेदारी सौंपते हुए तीन सप्ताह के अंदर अपनी रिपोर्ट और पदाधिकारी की सूची देने को कहा।बैठक में अखिल भारतीय उद्योग व्यापार मंडल के उत्तर प्रदेश प्रभारी रिपन कंसल, राष्ट्रीय मंत्री प्रदीप अग्रवाल, प्रदेश मीडिया प्रभारी सुरेश छबलानी,युवा अध्यक्ष अश्वन वर्मा,वरिष्ठ उपाध्यक्ष अनुज गौतम, संजय सोनकर, मनीष अग्रवाल,वेद रतन श्रीवास्तव,पतंजलि सिंह, राजीव कक्कड़, राजेश गुप्ता दीपेश, गुप्ता सुनित साहू, आदर्श अग्रवाल, शुभम मौर्या, संजय निधि अग्रवाल, असीम चंद्रा, अमरनाथ चौधरी, कमल चौधरी उपस्थित थे।*सुरेश छाबलानी

लखनऊ से अशोक कुमार कन्नौजिया

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