एक देश- एक चुनाव

 

रूस में राष्ट्रपति चुनाव के लिए शुरू हुई वोटिंग, पांचवीं बार सत्ता में लौट सकते हैं पुतिन

युद्ध के बीच मोहम्मद मुस्तफा बने फिलिस्तीन के नए प्रधानमंत्री

यूरोप शांति चाहता है तो उसे युद्ध के लिए तैयार रहना चाहिए: मैक्रो

1994 रामपुर तिराहा केस पर कोर्ट सुनाएगी फैसला

नागपुर में आज से शुरू होगा RSS का तीन दिन का कार्यक्रम

उदयनिधि स्टालिन के सनातन वाले बयान पर SC में सुनवाई आज

J&K: श्रीनगर में फर्नीचर फैक्ट्री में लगी भीषण आग, दमकल गाड़ियां मौके पर भेजी गईं

आज दोपहर तीन बजे प्रेस कांफ्रेंस करेंगे पशुपति पारस

आज केरल और कर्नाटक दौरे पर जाएंगे पीएम मोदी.

एक देश-एक चुनाव: जिन देशों में साथ चुनावों की व्यवस्था, उनकी प्रक्रिया का अध्ययन कर तैयार की रिपोर्ट.दक्षिण अफ्रीका में नेशनल असेंबली और प्रांतीय विधानमंडल, दोनों के लिए एक साथ मतदान होता है। हालांकि, नगरपालिका चुनाव पांच साल के चक्र में प्रांतीय चुनाव से अलग होते हैं। इस साल 29 मई को दक्षिण अफ्रीका में आम चुनाव होंगे। वहीं, स्वीडन में आनुपातिक चुनाव प्रणाली के आधार पर चुनाव होते हैं।लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराये जाने के मसले पर लंबे समय से बहस चल रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस विचार का समर्थन कर इसे आगे बढ़ाया है। आपको बता दें कि इस मसले पर चुनाव आयोग, नीति आयोग, विधि आयोग और संविधान समीक्षा आयोग विचार कर चुके हैं। अभी हाल ही में विधि आयोग ने देश में एक साथ चुनाव कराये जाने के मुद्दे पर विभिन्न राजनीतिक दलों, क्षेत्रीय पार्टियों और प्रशासनिक अधिकारियों की राय जानने के लिये तीन दिवसीय कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया था। इस कॉन्फ्रेंस में कुछ राजनीतिक दलों ने इस विचार से सहमति जताई, जबकि ज्यादातर राजनीतिक दलों ने इसका विरोध किया। उनका कहना है कि यह विचार लोकतांत्रिक प्रक्रिया के खिलाफ है। जाहिर है कि जब तक इस विचार पर आम राय नहीं बनती तब तक इसे धरातल पर उतारना संभव नहीं होगा। एक देश एक चुनाव की जरूरत क्यों है? इसकी पृष्ठभूमि क्या है? देश में इस प्रक्रिया को फिर से लाने के पक्ष में क्या तर्क हैं? इसकी सीमाएँ क्या हैं? इसमें आगे की राह क्या है? तो आइये, एक-एक कर इन सभी सवालों का जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं।किसी भी जीवंत लोकतंत्र में चुनाव एक अनिवार्य प्रक्रिया है। स्वस्थ एवं निष्पक्ष चुनाव लोकतंत्र की आधारशिला होते हैं। भारत जैसे विशाल देश में निर्बाध रूप से निष्पक्ष चुनाव कराना हमेशा से एक चुनौती रहा है। अगर हम देश में होने चुनावों पर नजर डालें तो पाते हैं कि हर वर्ष किसी किसी राज्य में चुनाव होते रहते हैं। चुनावों की इस निरंतरता के कारण देश हमेशा चुनावी मोड में रहता है। इससे केवल प्रशासनिक और नीतिगत निर्णय प्रभावित होते हैं बल्कि देश के खजाने पर भारी बोझ भी पड़ता है। इस सबसे बचने के लिये नीति निर्माताओं ने लोकसभा तथा राज्यों की विधानसभाओं का चुनाव एक साथ कराने का विचार बनाया।गौरतलब है कि देश में इनके अलावा पंचायत और नगरपालिकाओं के चुनाव भी होते हैं किन्तु एक देश एक चुनाव में इन्हें शामिल नहीं किया जाता।आपको बता दें कि एक देश एक चुनाव लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं का चुनाव एक साथ करवाने एक वैचारिक उपक्रम है। यह देश के लिये कितना सही होगा और कितना गलत, इस पर कभी खत्म होने वाली बहस की जा सकती है। लेकिन इस विचार को धरातल पर लाने के लिये इसकी विशेषताओं की जानकारी होना जरूरी है।एक देश एक चुनाव कोई अनूठा प्रयोग नहीं है, क्योंकि 1952, 1957, 1962, 1967 में ऐसा हो चुका है, जब लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव साथ-साथ करवाए गए थे। यह क्रम तब टूटा जब 1968-69 में कुछ राज्यों की विधानसभाएँ विभिन्न कारणों से समय से पहले भंग कर दी गई। आपको बता दें कि 1971 में लोकसभा चुनाव भी समय से पहले हो गए थे। जाहिर है जब इस प्रकार चुनाव पहले भी करवाए जा चुके हैं तो अब करवाने में क्या समस्या है।एक तरफ जहाँ कुछ जानकारों का मानना है कि अब देश की जनसंख्या बहुत ज्यादा बढ़ गई है, लिहाजा एक साथ चुनाव करा पाना संभव नहीं है, तो वहीं दूसरी तरफ कुछ विश्लेषक कहते हैं कि अगर देश की जनसंख्या बढ़ी है तो तकनीक और अन्य संसाधनों का भी विकास हुआ है। इसलिए एक देश एक चुनाव की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। किन्तु इन सब से इसकी सार्थकता सिद्ध नहीं होती, इसके लिए हमें इसके पक्ष और विपक्ष में दिये गए तर्कों का विश्लेषण करना होगा।एक देश एक चुनाव के पक्ष में कहा जाता है कि यह विकासोन्मुखी विचार है। जाहिर है लगातार चुनावों के कारण देश में बार-बार आदर्श आचार संहिता लागू करनी पड़ती है| इसकी वजह से सरकार आवश्यक नीतिगत निर्णय नहीं ले पाती और विभिन्न योजनाओं को लागू करने समस्या आती है। इसके कारण विकास कार्य प्रभावित होते हैं। आपको बता दें कि आदर्श आचार संहिता या मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट चुनावों की निष्पक्षता बरकरार रखने के लिये बनाया गया है।इसके तहत निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव अधिसूचना जारी करने के बाद सत्ताधारी दल के द्वारा किसी परियोजना की घोषणा, नई स्कीमों की शुरुआत या वित्तीय मंजूरी और नियुक्ति प्रक्रिया की मनाही रहती है। इसके पीछे निहित उद्देश्य यह है कि सत्ताधारी दल को चुनाव में अतिरिक्त लाभ मिल सके। इसलिए यदि देश में एक ही बार में लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं का चुनाव कराया जाए तो आदर्श आचार संहिता कुछ ही समय तक लागू रहेगी, और इसके बाद विकास कार्यों को निर्बाध पूरा किया जा सकेगा।एक देश एक चुनाव के पक्ष में दूसरा तर्क यह है कि इससे बार-बार चुनावों में होने वाले भारी खर्च में कमी आएगी। गौरतलब है कि बार-बार चुनाव होते रहने से सरकारी खजाने पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ता है। चुनाव पर होने वाले खर्च में लगातार हो रही वृद्धि इस बात का सबूत है कि यह देश की आर्थिक सेहत के लिये ठीक नहीं है।एक देश एक चुनाव के पक्ष में दिये जाने वाले तीसरे तर्क में कहा जाता है कि इससे काले धन और भ्रष्टाचार पर रोक लगाने में मदद मिलेगी। यह किसी से छिपा नहीं है कि चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों द्वारा काले धन का खुलकर इस्तेमाल किया जाता है। हालाँकि देश में प्रत्याशियों द्वारा चुनावों में किये जाने वाले खर्च की सीमा निर्धारित की गई है, किन्तु राजनीतिक दलों द्वारा किये जाने वाले खर्च की कोई सीमा निर्धारित नहीं की गई है। कुछ विश्लेषक यह मानते हैं कि लगातार चुनाव होते रहने से राजनेताओं और पार्टियों को सामजिक समरसता भंग करने का मौका मिल जाता है जाता है,जिसकी वजह से अनावश्यक तनाव की परिस्थितियां बन जाती हैं| एक साथ चुनाव कराये जाने से इस प्रकार की समस्याओं से निजात पाई जा  सकती है।इसके पक्ष में चौथा तर्क यह है कि एक साथ चुनाव कराने से सरकारी कर्मचारियों और सुरक्षा बलों को बार-बार चुनावी ड्यूटी पर लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इससे उनका समय तो बचेगा ही और वे अपने कर्त्तव्यों का पालन भी सही तरीके से कर पायेंगे। आपको बता दें कि हमारे यहाँ चुनाव कराने के लिये शिक्षकों और सरकारी नौकरी करने वाले कर्मचारियों की सेवाएं ली जाती हैं, जिससे उनका कार्य प्रभावित होता है। इतना ही नहीं, निर्बाध चुनाव कराने के लिये भारी संख्या में पुलिस और सुरक्षा बलों की तैइसके अलावा बार-बार होने वाले चुनावों से आम जन-जीवन भी प्रभावित होता है।

एक देश एक चुनाव के विरोध में विश्लेषकों का मानना है कि संविधान ने हमें संसदीय मॉडल प्रदान किया है जिसके तहत लोकसभा और विधानसभाएँ पाँच वर्षों के लिये चुनी जाती हैं, लेकिन एक साथ चुनाव कराने के मुद्दे पर हमारा संविधान मौन है। संविधान में कई ऐसे प्रावधान हैं जो इस विचार के बिल्कुल विपरीत दिखाई देते हैं। मसलन अनुच्छेद 2 के तहत संसद द्वारा किसी नये राज्य को भारतीय संघ में शामिल किया जा सकता है और अनुच्छेद 3 के तहत संसद कोई नया राज्य राज्य बना सकती है, जहाँ अलग से चुनाव कराने पड़ सकते हैं।इसी प्रकार अनुच्छेद 85(2)() के अनुसार राष्ट्रपति लोकसभा को और अनुच्छेद 174(2)() के अनुसार राज्यपाल विधानसभा को पाँच वर्ष से पहले भी भंग कर सकते हैं। अनुच्छेद 352 के तहत युद्ध, बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में राष्ट्रीय आपातकाल लगाकर लोकसभा का कार्यकाल बढ़ाया जा सकता है। इसी तरह अनुच्छेद 356 के तहत राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है और ऐसी स्थिति में संबंधित राज्य के राजनीतिक समीकरण में अप्रत्याशित उलटफेर होने से वहाँ फिर से चुनाव की संभावना बढ़ जाती है।  ये सारी परिस्थितियाँ एक देश एक चुनाव के नितांत विपरीत हैं।एक देश एक चुनाव के विरोध में दूसरा तर्क यह दिया जाता है कि यह विचार देश के संघीय ढाँचे के विपरीत होगा और संसदीय लोकतंत्र के लिये घातक कदम होगा। लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं का चुनाव एक साथ करवाने पर कुछ विधानसभाओं के मर्जी के खिलाफ उनके कार्यकाल को बढ़ाया या घटाया जायेगा जिससे राज्यों की स्वायत्तता प्रभावित हो सकती है। भारत का संघीय ढाँचा संसदीय शासन प्रणाली से प्रेरित है और संसदीय शासन प्रणाली में चुनावों की बारंबारता एक अकाट्य सच्चाई है।एक देश एक चुनाव के विरोध में तीसरा तर्क यह है कि अगर लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ करवाए गए तो ज्यादा संभावना है कि राष्ट्रीय मुद्दों के सामने क्षेत्रीय मुद्दे गौण हो जाएँ या इसके विपरीत क्षेत्रीय मुद्दों के सामने राष्ट्रीय मुद्दे अपना अस्तित्व खो दें। दरअसल लोकसभा एवं विधानसभाओं के चुनाव का स्वरूप और मुद्दे बिल्कुल अलग होते हैं। लोकसभा के चुनाव जहाँ राष्ट्रीय सरकार के गठन के लिये होते हैं, वहीं विधानसभा के चुनाव राज्य सरकार का गठन करने के लिये होते हैं। इसलिए लोकसभा में जहाँ राष्ट्रीय महत्त्व के मुद्दों को प्रमुखता दी जाती है, तो वहीं विधानसभा चुनावों में क्षेत्रीय महत्त्व के मुद्दे आगे रहते हैं।

इसके विरोध में चौथा तर्क यह है कि लोकतंत्र को जनता का शासन कहा जाता है। देश में संसदीय प्रणाली होने के नाते अलग-अलग समय पर चुनाव होते रहते हैं और जनप्रतिनिधियों को जनता के प्रति लगातार जवाबदेह बने रहना पड़ता है। इसके अलावा कोई भी पार्टी या नेता एक चुनाव जीतने के बाद निरंकुश होकर काम नहीं कर सकता क्योंकि उसे छोटे-छोटे अंतरालों पर किसी किसी चुनाव का सामना करना पड़ता है। विश्लेषकों का मानना है कि अगर दोनों चुनाव एक साथ कराये जाते हैं, तो ऐसा होने की आशंका बढ़ जाएगी।एक देश एक चुनाव के विरोध में  पाँचवा तर्क यह दिया जाता है कि भारत जनसंख्या के मामले में विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश है। लिहाजा बड़ी आबादी और आधारभूत संरचना के अभाव में लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं का चुनाव एक साथ कराना तार्किक प्रतीत नहीं होता।एक देश एक चुनाव की अवधारणा में कोई बड़ी खामी नहीं है, किन्तु राजनीतिक पार्टियों द्वारा जिस तरह से इसका विरोध किया जा रहा है उससे लगता है कि इसे निकट भविष्य लागू कर पाना संभव नहीं है। इसमें कोई दो राय नहीं कि विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत हर समय चुनावी चक्रव्यूह में घिरा हुआ नजर आता है।चुनावों के इस चक्रव्यूह से देश को निकालने के लिये एक व्यापक चुनाव सुधार अभियान चलाने की आवश्यकता है। इसके तहत जनप्रतिनिधित्व कानून में सुधार, कालेधन  पर रोक, राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण पर रोक, लोगों में राजनीतिक जागरूकता पैदा करना शामिल है जिससे समावेशी लोकतंत्र की स्थापना की जा सके। यदि देश में 'एक देश एक कर' यानी GST लागू हो सकता है तो एक देश एक चुनाव क्यों नहीं हो सकता? अब समय गया है कि सभी राजनीतिक दल खुले मन से इस मुद्दे पर बहस करें ताकि इसे अमलीजामा पहनाया जा सके।

अप्राकृतिक यौन संबंध मामले में अदालत ने मध्यप्रदेश के नेता राघवजी से मांगा जवाब; मामला जुलाई 2013 का है, जब शिकायतकर्ता ने भोपाल के हबीबगंज पुलिस स्टेशन में नेता के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि नेता उसे नौकरी दिलाने के बदले में उसके साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाता था।

सीएम ममता बनर्जी को अस्पताल से मिली छुट्टी, डॉक्टर बोले- उन्हें किसी ने पीछे से धक्का दिया. एसएसकेएम अस्पताल के निदेशक डॉ. मणिमोय बंद्योपाध्याय ने बताया कि सीएम को अस्पताल में रहने की सलाह दी गई थी लेकिन उन्होंने घर जाने की इच्छा जताई। सीएम घर पर निगरानी में रहेंगी। डॉक्टरों की टीम उनकी देखभाल करेगी। 

अमेरिका के ऊपर नेशनल डेट लगातार बढ़ा है. इसे लेकर कई एक्सपर्ट समय-समय पर चिंताएं जाहिर करते रहे हैं.अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. ऐसे में अगर आपको कोई कहे कि अमेरिका भी दिवालिया हो सकता है, तो आप शायद ही यकीन करें. आपको भले ऐसा होना मुश्किल लगता हो, लेकिन दुनिया के सबसे अमीर लोगों में एक एलन मस्क को इसकी आशंका सता रही है. मस्क को डर है कि कहीं आने वाले सालों में दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था दिवालिया हो जाए.एलन मस्क ने यह आशंका सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर जाहिर की है. एक्स को पहले ट्विटर के नाम से जाना जाता था, जिसे अब एलन मस्क खरीद चुके हैं. अधिग्रहण करने के बाद उन्होंने ट्विटर को एक्स नाम से रिब्रांड किया है. वह एक्स पर काफी एक्टिव रहते हैं और कारोबार से लेकर अर्थव्यवस्था तक विभिन्न मुद्दों पर मुखरता से अपनी राय जहिर करते हैं.ताजे मामले में एलन मस्क एक्स पर एक पोस्ट का जवाब दे रहे थे. एक यूजर @WallStreetSilv ने एक पोस्ट में चेताया है कि कुछ सालों में अमेरिकी करदाताओं का 100 फीसदी पैसा सिर्फ राष्ट्रीय कर्ज का ब्याज भरने में खर्च हो सकता है. यानी ऐसी स्थिति सकती है कि अमेरिकी सरकार को टैक्स से होने वाली अपनी पूरी कमाई सिर्फ कर्ज के ब्याज के भुगतान में खर्च करना पड़ सकता है. उसी पोस्ट पर रिप्लाई करते हुए मस्क लिखते हैं- ओवरस्पेंडिंग को बंद करना ही होगा, वर्ना अमेरिका दिवालिया हो जाएगा.पोस्ट में इस आशंका को ठोस आधार देने वाले कुछ आंकड़े भी दिए गए हैं. पोस्ट के अनुसार, अमेरिकी सरकार के राजस्व का आधा हिस्सा इंडिविजुअल इनकम टैक्स से आता है. फरवरी महीने में इंडिविजुअल इनकम टैक्स से अमेरिकी सरकार को 120 बिलियन डॉलर मिले. वहीं फरवरी महीने के दौरान अमेरिकी सरकार ने नेशनल डेट का ब्याज भरने में 76 बिलियन डॉलर खर्च किया. इस तरह देखें तो अभी ही अमेरिकी सरकार को टैक्सपेयर्स से मिलने वाली रकम का करीब 63 फीसदी हिस्सा ब्याज भरने में खर्च हो गया.स्ट में आगे चेताया गया है कि फरवरी में सरकार ने इंडिविजुअल टैक्सपेयर्स से हुई कमाई का 63 फीसदी सिर्फ ब्याज में खर्च किया. यह खर्च सड़क पर हुआ, सेना पर, स्कूलों पर हुआ, ही लोगों की सामाजिक सुरक्षा पर, बल्कि सिर्फ कर्ज का ब्याज भरने में. इस मौजूदा स्थिति को देखते हुए मस्क समेत विभिन्न यूजर्स की अमेरिका के दिवालिया होने की आशंकाएं निराधार नहीं लगती हैं.

PSB: केंद्र की हिस्सेदारी घटाने की योजना, 75 फीसदी से नीचे लाएंगे पांच सरकारी बैंक. वित्तीय सेवा सचिव विवेक जोशी ने गुरुवार को कहा, 12 सरकारी बैंकों (पीएसबी) में से चार 31 मार्च, 2023 तक सार्वजनिक शेयरधारिता नियमों का अनुपालन कर चुके हैं। चालू वित्त वर्ष में तीन और पीएसबी न्यूनतम 25 फीसदी एमपीएस का अनुपालन पूरा कर चुके हैं।शेष पांच सरकारी बैंकों ने एमपीएस मानदंड पूरी करने की योजना बनाईहै।

पूर्व मुख्य न्यायाधीश गोगोई ने कहा- जजों की नियुक्ति में सही व्यक्ति का चयन जरूरी. यह बात पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगाई ने श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स में आयोजित बिजनेस कॉन्क्लेव में छात्रों को संबोधित करते हुए कहीं। तीन दिवसीय बिजनेस कॉन्क्लेव में अमर उजाला नॉलेज पार्टनर की भूमिका निभा रहा है।

2030 तक जीडीपी में एक लाख करोड़ डॉलर जोड़ेंगी यूनिकॉर्न कंपनियां, देंगी 5 करोड़ रोजगार. सीआईआई के अध्यक्ष आर दिनेश ने कहा, स्टार्टअप तंत्र नवाचार, जुझारू क्षमता परिवर्तनकारी विचारों के धागों से बुना एक जीवंत चित्र है। यह रिपोर्ट मैकिंजी एंड कंपनी के सहयोग से तैयार की गई है।

ड्यूटी के दौरान रखें रोजा', पाकिस्तान में किसने जारी किया निर्देश,. कॉरपोरेट सुरक्षा प्रबंधन और चालक दल चिकित्सा केंद्र दोनों ने ही सिफारिश की है कि पीआईए के पायलट और चालक दल के सदस्यों को उड़ान के दौरान रोजा नहीं रखना चाहिए

लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार ने बड़ा ऐलान किया है. सरकार ने पेट्रोल और डीजल की कीमत में कटौती का ऐलान किया है. पेट्रोल और डीजल की कीमतों में 2-2 रुपये प्रति लीटर की कटौती की गई है. नई कीमतें 15 मार्च 2024 सुबह 6 बजे से प्रभावी होंगी. केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने ट्वीट कर कहा, पेट्रोल और डीजल के दाम में 2 रुपये की कमी करके देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर साबित कर दिया कि करोड़ों भारतीयों के अपने परिवार का हित और सुविधा सदैव उनका लक्ष्य है. उन्होंने महाकवि रामधारी सिंह दिनकर की कविता की पंक्तियां भी शेयर कीं. उन्होंने कहा, जब विश्व मुश्किल दौर से गुजर रहा था कि विकसित और विकासशील देशों में पेट्रोल के दामों में 50-72 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी हुई और हमारे आसपास के कई देशों में तो पेट्रोल मिलना ही बंद हो गया तब भी 1973 के बाद आए पचास साल के सबसे बड़े तेल संकट के बावजूद पीएम मोदी के दूरदर्शी और सहज नेतृत्व के कारण मोदी के परिवार पर आंच नहीं आई. भारत में पेट्रोल के दाम बढ़ने के बजाय पिछले ढ़ाई सालों में 4.65 प्रतिशत कम हुए!हरदीप पुरी ने आगे लिखा, भारत में ईंधन की सप्लाई निरंतर बनी रही, सस्ते दामों पर बनी रही और हमारे कदम निरंतर हरित ऊर्जा की ओर भी बढ़ते रहे. यानि भारत ने Energy Availability, Affordability और Sustainability को बरकरार रखा. भारत इकलौता ऐसा देश था जहां पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़े नहीं, बल्कि कम हुए. हमने जहां से हुआ अपने देशवासियों के लिए तेल खरीदा. पीएम मोदी के प्रधानमंत्री बनने के पहले हम 27 देशों से कच्चा तेल खरीदते थे, लेकिन उनके नेतृत्व में अपने देशवासियों को सस्ता पेट्रोल, डीजल और गैस पहुंचाने के लिए इस दायरे को बढ़ाया और अब हम 39 देशों से मोदी के परिवार की जरूरतें पूरी करने के लिए कच्चा तेल खरीदते हैं. हरदीप पुरी ने लिखा, 14 मार्च 2024 को रुपये के आधार पर भारत में पेट्रोल औसतन ₹94 प्रति लीटर है लेकिन इटली में ₹168.01- यानी 79% अधिक; फ्रांस में ₹166.87 यानी 78% अधिक; जर्मनी में ₹159.57 यानी 70% अधिक और स्पेन में ₹145.13 यानी 54% अधिक और ऐसे ही डीजल के दामों की तुलना कीजिए तो यदि भारत की औसत ₹87 प्रति लीटर है तो इटली में ₹163.21 यानी 88% अधिक; फ्रांस में ₹161.57 यानी 86% अधिक; जर्मनी में ₹155.68 यानी 79% अधिक और स्पेन में ₹138.07 यानी 59% अधिक!

पिछले 24 घंटों के दौरान, जम्मू कश्मीर, गिलगित बाल्टिस्तान, मुजफ्फराबाद, लद्दाख और हिमाचल प्रदेश में हल्की से मध्यम बारिश और बर्फबारी हुई।उत्तराखंड के ऊपरी इलाकों में छिटपुट हल्की बारिश और छिटपुट बर्फबारी हुई।गंगीय पश्चिम बंगाल, पूर्वी असम और उत्तरी ओडिशा में हल्की से मध्यम बारिश हुई।पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तरी राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और केरल में कुछ स्थान पर हल्की बारिश हुई।अगले 24 घंटों के दौरान अरुणाचल प्रदेश में हल्की से मध्यम बारिश और छिटपुट बर्फबारी संभव है।असम, मिजोरम, त्रिपुरा, गंगीय पश्चिम बंगाल, ओडिशा के उत्तरी तट, केरल और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के दक्षिणी हिस्सों में हल्की बारिश हो सकती है।आज 14 मार्च को पश्चिमी हिमालय के अलग-अलग इलाकों में हल्की बारिश और बर्फबारी संभव है और कल से मौसम साफ हो जाएगा।



The Ministry blocks 18 OTT platforms, 19 websites, 10 apps, and 57 social media handles for obscene content after warnings.

Sudha Murty sworn in as a Rajya Sabha member after the President’s nomination.

Fitch expects India’s GDP growth momentum to ease to 7.8% in FY24 after three quarters exceeding 8%.

Passing Out Parade of 2,600 Agniveers, including women, to be held at INS Chilka on March 15, 2024.

Heavy Industries Ministry announces ₹500 crore Electric Mobility Promotion Scheme 2024 to accelerate EV adoption.

US House passes bill potentially banning TikTok unless it parts ways with Chinese parent ByteDance.

Bhutanese PM Dasho Tshering Tobgay begins a 5-day India visit, his first overseas trip after assuming office.

Rachin Ravindra becomes the youngest recipient of the Sir Richard Hadlee Medal as New Zealand’s best male cricketer, while Amelia Charlotte Kerr wins top women’s awards.

Sancho, Reus score as Borussia Dortmund defeats PSV Eindhoven 2-0 to reach UEFA Champions League quarterfinals for the first time in 3 years.

Let us understand the deeper meaning of today’s Thought of the Day for Students for School Assembly News Headlines:

“Failure will never overtake me if my determination to succeed is strong enough.” – Og Mandino

Meaning: The quote by Og Mandino highlights the importance of determination and flexibility in the face of failure. It suggests that as long as one maintains a strong resolution to succeed, failure will never become a declining factor in life. Essentially, the quote emphasizes the importance of perseverance and a steadfast commitment to achieving one´s goals.

Regardless of the setbacks or obstacles encountered along the way, individuals who possess steadfast determination are more likely to overcome challenges and ultimately achieve success.



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