तुर्की- महिला समान अधिकार विरोधी सोच

 

कनाडा: टोरंटो के एक स्कूल में गोलीबारी

चक्रवात रेमल: पश्चिम बंगाल के तटीय इलाकों में लैंडफॉल शुरू

लोकसभा चुनाव: आज दोपहर को वाराणसी पहुंचे सीएम योगी

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह आज यूपी के कुशीनगर में रैली करेंगे रैली

सपा प्रमुख अखिलेश यादव आज यूपी के गाजीपुर में चुनावी रैली को करेंगे संबोधित

प्रियंका गांधी आज हिमाचल के कांगड़ा में कांग्रेस उम्मीदवार के लिए चुनाव प्रचार करेंगी

कांग्रेस नेता राहुल गांधी आज बिहार में तीन चुनावी रैलियों को करेंगे संबोधित

यूपी और हिमाचल प्रदेश में आज जनसभा को संबोधित करेंगे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह.

लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण की सभी 13 सीटों पर बढ़त बनाने के लिए पक्ष और विपक्ष ने पूरी ताकत झोंक दी है। पूरब में जातीय समीकरणों के जोर को देखते हुए विपक्ष के साथ ही भाजपा ने भी अपनी प्रचार रणनीति में बदलाव किया है। हर जाति हर वर्ग के मतदाताओं को साधने के लिए भाजपा ने सोशल इंजीनियरिंग पर खास फोकस  किया है।दरअसल, पूर्वी यूपी में मुद्दों के बजाय जातीय समीकरण के आधार पर ही चुनावी माहौल बनता-बिगड़ता रहा है। लिहाजा राजनीतिक दल भी उसके मिजाज के आधार पर ही अपनी रणनीति तैयार करती हैं। मोदी-योगी जहां इलाके को मथ रहे हंै, वहीं, विपक्ष की ओर से उछाले गए आरक्षण जैसे मुद्दे पर पिछड़ों और दलितों को समझाने का भी प्रयास कर रहे हैं। राजस्थान और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्रियों को भी प्रचार में उतारा गया है। इसी तरह हर बूथ पर भी जातीय समीकरण को देखते हुए स्थानीय नेताओं को लगाया गया है।यानी दलित बहुल बूथ पर दलित नेता और पिछड़ा बहुल बूथ पर पिछड़े समाज के नेता को जिम्मेदारी सौंपी गई है। खास बात है कि पहली बार भाजपा की ओर से गरीब मुस्लिम आबादी वाले बूथों पर भी पार्टी के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के पदाधिकारियों को उतारा गया है. यूपी में सपा के कॉडर वोट बैंक माने जाने वाले यादव जाति को साधने के लिए भाजपा द्वारा तैयार की गई खास रणनीति के तहत मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव भी पूरब में प्रचार के लिए सियासी मैदान में उतर चुके हैं। एक-एक दिन में उनके सात से आठ कार्यक्रम कराए जा रहे हैं। वहीं, ब्राह्मण मतदाताओं के बीच राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के चेहरे का इस्तेमाल हो रहा है। साथ में स्थानीय ब्राह्मण चेहरों को भी लगाया गया है।पूरब में मतदान बढ़ाने को लेकर भाजपा का खास फोकस दलित मतदाताओं को बूथ तक लाने की है। खास बात यह है कि इस काम में भाजपा के साथ ही संघ परिवार भी जुटा है। संघ परिवार को खास तौर पर आरक्षण खत्म करने और संविधान बदलने के मुद्दे पर दलितों को समझाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

दो जून से हैदराबाद नहीं रहेगी आंध्र की राजधानी, प्रदेश पुनर्गठन कानून की मियाद पूरी. आंध्र प्रदेश पुनर्गठन कानून एक मार्च, 2014 को अस्तित्व में आया था। इसमें कहा गया था कि हैदराबाद 10 वर्ष से अधिक की अवधि के लिए तेलंगाना और आंध्र प्रदेश दोनों के लिए सामान्य राजधानी होगा। इस कानून के तहत 2 जून, 2024 से हैदराबाद सिर्फ तेलंगाना की ही राजधानी होगा। 

ठगने की नई रणनीति अपना रहे जालसाज, एपीके के जरिए बैंक खातों में कर रहे सेंधमारी; बरतें सावधानी. हाल में एसबीआई, आईसीआईसीआई बैंक, एक्सिस बैंक, पीएनबी के साथ कई अन्य बैंकों ने ग्राहकों को बैंकिंग धोखाधड़ी के नए तरीके के बारे में चेताया है। एंड्रॉयड इकोसिस्टम ग्राहकों को प्ले स्टोर पर थर्ड पार्टी के मोबाइल एप्लिकेशन और उस पर पूरा कंट्रोल लेने की मंजूरी देता है। यह हैकर्स के लिए एपीके (एंड्रॉयड पैकेज किट) इंस्टॉल कर या वैध एप्लिकेशन में छेड़छाड़ कर यूजर के एंड्रॉयड डिवाइस में सेंध लगाने के काबिल बना देता है।

'सिल्क रूट की तरह गेम चेंजर होगा भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा', प्रधानमंत्री मोदी बोले. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा सिल्क रूट की तरह एक बड़ा गेम चेंजर होगा। आईएमईसी के लिए पिछले साल भारत की मेजबानी में आयोजित G20 शिखर सम्मेलन के दौरान एक समझौता हुआ था।

आरा में लगातार तीन बार कोई नहीं जीता, भाजपा के आरके सिंह के सामने मिथक तोड़ने की बड़ी चुनौती. नौकरशाह रहे आरके सिंह इस सीट से 2014 और 2019 में जीत चुके हैं। अगर वे इस बार भी जीतते हैं, तो यह कमाल करने वाले पहले सांसद होंगे। 1975 बैच के आईएएस अफसर रहे आरके सिंह केंद्र सरकार में गृह सचिव रहे हैं।

मोबाइल पोलिंग टीमों ने 96 मतदाताओं को घर से करवाया मतदान. चुनाव आयोग के निर्देशानुसार निर्वाचन क्षेत्र में 85 वर्ष से अधिक आयु वर्ग और दिव्यांग मतदाताओं से घर पर ही मतदान करवाया जा रहा है।

बड़सर अस्पताल में सप्ताह में एक दिन हो रहे अल्ट्रासाउंड. स्वास्थ्य विभाग प्रतिनियुक्ति पर रेजियोलॉजिस्ट भेजकर सप्ताह में एक दिन यानी मंगलवार को अल्ट्रासाउंड सेवाएं बहाल कर रहा है। आपात स्थिति में मरीजों को अल्ट्रासाउंड कराने के लिए निजी लैब में भटकना पड़ रहा है।

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी आज यानी सोमवार को बिहार का दौरान करेंगे. एकदिवसीय दौरे पर राहुल पटना साहिब, पाटलिपुत्र और आरा में चुनावी रैली को संबोधित करेंगे.

मार्च 2024 में तुर्की के दक्षिणी शहर मर्सिन में 31 वर्षीय मर्वे बेहेर की हत्या उनके पूर्व पति ने कर दी. इसके बाद बड़ी संख्या में महिलाएं विरोध प्रदर्शन के लिए सड़कों पर उतर आईं.महिलाओं की हत्या के ख़िलाफ़ इस विरोध प्रदर्शन के दौरान मर्वे की मां ने उसके शादी के जोड़े को आग लगा दी. उन्होंने महिलाओं से अपील की कि वो शादी करने से पहले तीस बार सोचें.इस साल के पहले तीन महीनों के दौरान तुर्की में मर्वे सहित कम से कम 92 महिलाओं की हत्या कर दी गई है.तीन साल पहले तुर्की इस्तांबुल कन्वेंशन से बाहर हो गया था. इस्तांबुल संधि पूरे यूरोप में महिलाओं और लड़कियों के ख़िलाफ़ हिंसा रोकने के उद्देश्य से कायम की गई थी. यह कहानी शुरू होती है आधुनिक तुर्की की स्थापना के 100 साल से भी अधिक पहले से. तब तुर्की ओटोमन साम्राज्य था. यह यूरोप से मध्य पूर्व तक फैला हुआ था. "मुस्लिम साम्राज्य होने के बावजूद ओटोमन साम्राज्य में कई धर्म और जाति के लोग थे. 1920 के दशक में तुर्की एक आधुनिक देश के रूप में उभरने लगा तो ओटोमन साम्राज्य की धार्मिक और सामाजिक विविधता उसमें बरकरार रही. इतना ही नहीं, सरकार के ढांचे और संस्थाओं के कामकाज के तरीकों की निरंतरता भी बनी रही. यह अपने आप में एक अनूठी बात थी.लंबे समय तक यह माना जाता रहा कि तुर्की में महिला सशक्तिकरण का श्रेय मुस्तफ़ा कमाल अतातुर्क को जाता है जिनके नेतृत्व में 1923 में तुर्की गणराज्य की स्थापना हुई थी. ओटोमन साम्राज्य की कई मुस्लिम महिलाओं ने महिला अधिकार के लिए अभियान शुरू किया था और कई महिला संगठनों की स्थापना हुई जो लोकतांत्रिक तुर्की को विरासत में मिली.लेकिन तुर्की में बड़ा बदलाव प्रथम विश्व युद्ध के दौरान आया. इस समय पुरुष लड़ने के लिए चले गए और महिलाओं को यूनिवर्सिटी और कॉलेज जाने की अनुमति मिल गई. इतना ही नहीं वे कई नए व्यवसाय भी चुन सकती थीं.एक क्रांतिकारी और अनूठा कदम था क्योंकि पहली बार किसी मुस्लिम देश में परिवार संबंधी धर्मनिरपेक्ष क़ानून बने थे जिसके तहत शादी, तलाक और उत्तराधिकार के मामलों में महिलाओं को समान अधिकार मिले थे, लेकिन नागरिक संहिता में पितृसत्तात्मक बातें भी थीं. मिसाल के तौर पर पुरुष को ही परिवार का मुखिया माना जाता था और परिवार के खर्च चलाने की ज़िम्मेदारी पुरूषों के पास ही थी. यह क़ानून तुर्की के पहले राष्ट्रपति मुस्तफ़ा कमाल अतातुर्क द्वारा देश को धर्मनिरपेक्ष और आधुनिक बनाने के लिए चलाए गए कई क्रांतिकारी सुधार कार्यक्रमों का हिस्सा था.एक ग़लत धारणा यह है कि महिलाओं को समान अधिकार सौंप दिए गए. सच्चाई यह है कि इसके लिए महिलाओं को संघर्ष करना पड़ा था.हालांकि यह भी सच है कि महिलाओं को शिक्षा का अधिकार देकर उन्हें देश के सार्वजनिक जीवन का हिस्सा बनाना मुस्तफ़ा कमाल अतातुर्क की विचारधारा के केंद्र में था.यही वजह है कि महिला अधिकार के मुद्दे को देश में धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक विचारधारा के साथ जोड़ कर देखा जाता है.1980 के दशक में स्थिति बदली और देश में महिलाओं की भूमिका को लेकर रूढ़िवादी सोच बल पाने लगी जिसके जवाब में नई नारीवादी महिलाएं सामने आईं. इन महिलाओं को लगता था कि नागरिक संहिता बदले हुए समय में काफ़ी पिछड़ी है.नागरिक संहिता में बदलाव किए गए और शादी के लिए न्यूनतम आयु को बढ़ा कर 18 वर्ष कर दिया गया और तलाक होने पर महिलाओं को पति के नाम पर रजिस्टर्ड संपत्ति में आधा हिस्सा दिया गया."महिला सशक्तिकरण के इस परिदृश्य में ही एक ऐसे नेता तुर्की की राजनीति में आए, जिन्होंने उन धार्मिक महिलाओं को आकर्षित करने की कोशिश की जो अतातुर्क की विचारधारा वाली राजनीति के दौर में अलग थलग पड़ गई थीं. ये वो समय था जब सार्वजनिक जगहों पर महिलाओं के हिजाब पहनने पर भी रोक लगा दी गई थी.रेचेप तैय्यप अर्दोआन के राजनीति में आने के साथ तुर्की में एक बार फिर सामाजिक बदलाव का दौर शुरू हुआ.वो तुर्की के सबसे बड़े शहर इस्तांबुल के मेयर रह चुके थे. 2001 में उन्होंने इस्लामी सिद्धांतों पर आधारित नई जस्टिस और डेवलपमेंट पार्टी यानी एकेपी की स्थापना की. इस पार्टी ने एक साल बाद संसदीय चुनावों में बहुमत प्राप्त किया. इसके एक साल बाद अर्दोआन तुर्की के प्रधानमंत्री बने.तुर्की की इसीक यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र की प्रोफ़ेसर सेडा डेमिराल्प कहती हैं कि अर्दोआन को रूढ़िवादी महिलाओं का समर्थन प्राप्त था और उन्होंने हिजाब की समस्या का समाधान करने का आश्वासन दिया था.जब एकेपी की स्थापना हुई तब आर्थिक संकट के कारण अन्य सभी राजनीतिक दलों की ताक़त लगभग ख़त्म हो गई थी. यह एक नई पार्टी के सत्ता में आने के लिए काफ़ी अनुकूल माहौल था. यह पार्टी शुरूआत में रूढ़िवादी मूल्यों और उदारवादी सिद्धांतों के मेल का प्रतिनिधित्व करती थी.अर्दोआन को तुर्की के सभी तबकों का समर्थन प्राप्त था लेकिन इसका एक बड़ा हिस्सा महिलाएं थीं. ख़ास तौर पर हिजाब पहने वाली महिलाएं, जो उन्हें अपने हिमायती के रूप में देखती थीं.धर्मनिरपेक्ष तुर्की में सार्वजनिक जगहों पर हिजाब पहनने पर प्रतिबंध के चलते कई महिलाएं ना उच्च शिक्षा पा सकती थीं ना दफ़्तरों में काम कर सकती थीं.कई उदारवादी और नारीवादी महिलाएं भी अर्दोआन का समर्थन करती थीं क्योंकि उन्हें लगता था कि हिजाब पर प्रतिबंध रूढ़िवादी महिलाओं के अधिकारों का हनन है. अर्दोआन की एकेपी पार्टी ने महिलाओं के सशक्तिकरण, राजनीति और समाज में उनकी भूमिका की बात की. एकेपी ने महिलाओं को पार्टी के कामकाज से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित किया और देश में कई महिला संगठन उभरने लगे.एक समय तुर्की की बड़ी महत्वाकांक्षा यूरोपीय संघ में शामिल होने की थी जिसके लिए आवश्यक शर्तें पूरी करने के लिए अर्दोआन कदम उठा रहे थे.अंतरराष्ट्रीय समुदाय में उन्हें एक सुधारक के रूप में देखा जा रहा था, लेकिन उनके कुछ वक्तव्यों से धर्मनिरपेक्ष महिलाएं नाराज़ भी हो गईं.एक भाषण में उन्होंने कहा था कि महिलाएं मर्दों के बराबर नहीं हैं और एक अन्य भाषण में कहा कि मां बनना एक महिला की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी है.2013 में इस्तांबुल के मध्य में एक पार्क बनाने के सरकारी प्रोजेक्ट के विरोध में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए. पुलिस ने प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ क्रूरता से कार्रवाई की, जिसके बाद स्थिति और बदल गई."अर्दोआन तानाशाही तरीके अपनाने लगे और विरोध प्रदर्शनों का समर्थन करने वाली महिलाओं को निशाना बनाया. दूसरी तरफ़ उन्होंने रूढ़िवादी महिलाओं को आर्थिक सहायता और सार्वजनिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका देना शुरू कर दिया जिसके चलते धर्मनिरपेक्ष महिलाएं उनका और विरोध करने लगीं. 2013 के बाद तुर्की में शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों पर नियंत्रण लग गए हैं. गेज़ी विरोध प्रदर्शनों के बाद लैंगिक समानता के लिए आयोजित प्राइड मार्च में महिलाओं के भाग लेने का भी विरोध होने लगा. उसके बाद 2015 में एक और बदलाव आया.उस साल सभी अधिकारिक दस्तावेज़ों से लैंगिक जानकारी हटा दी गई. इसके बाद कई लैंगिक विरोधी नीतियां अपनाई गईं और सरकार समर्थक एनजीओ बनाए गए जो महिलाओं को पहले से मिले अधिकारों पर हमला करने लगे.”2020 में तुर्की ने इस्तांबुल कन्वेंशन l निशाना बनाने के लिए ग़लत प्रचार शुरू कर दिया. तब तक उसकी यूरोपीय संघ की सदस्यता पाने की संभावना ठंडे बस्ते में चली गई थी.तुर्की ने कहा कि यह संधि पारिवारिक मूल्यों के ख़िलाफ़ है और समलैंगिकता को बढ़ावा देती है. इस्तांबुल कन्वेंशन में शामिल होने के 10 साल बाद तुर्की ने अपने आपको इस संधि से बाहर कर दिया.तुर्की के इस्तांबुल कन्वेंशन से बाहर होने के बाद घरेलू हिंसा संबंधी क़ानून खोखला हो गया है और कई प्रकार की ग़लतफ़हमियां फैल रही हैं.कई पुलिस अधिकारी भी असमंजस में हैं कि यह क़ानून अस्तित्व में है या नहीं.कई रिपोर्टों से पता चलता है कि महिलाओं पर हमला करने वालों में क़ानून का डर ख़त्म हो गया है क्योंकि वो सोचते हैं कि अब तुर्की इस्तांबुल कन्वेंशन का हिस्सा नहीं है तो अब उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता.तुर्की के इस्तांबुल कन्वेंशन से बाहर होने के बाद महिलाओं की हत्या के मामले कितने बढ़ें है यह कहना मुश्किल है क्योंकि सरकार इस संबंध में आंकड़े सार्वजनिक नहीं कर रही है.सरकार नहीं चाहती की इस मामले में उस पर अंतरराष्ट्रीय मंच पर उंगलियां उठें.कई नारीवादी संगठन इन संख्याओं को आधार बना कर नीति बनाने पर ज़ोर दे सकते हैं. लेकिनवी विल स्टॉप फ़ेमीसाइडनाम की एक संस्था इन मामलों पर नज़र रख रही है.सरकार इस संस्था को बंद करने की असफल कोशिश भी कर चुकी है.इस संस्था के अनुसार, 2023 में पुरुषों द्वारा 315 महिलाओं की हत्या हुई और इनमें से 65 प्रतिशत मामलों में महिलाओं की हत्या उनके घर के भीतर हुईं.सही संख्या का पता लगाना असंभव है क्योंकि उसी साल 248 औरतों की मौत संदेहास्पद स्थिति में हुई थी.संदेहास्पद इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि इन मामलों को हत्या के मामले के तहत दर्ज नहीं किया गया बल्कि दुर्घटना बताया गया. यह चौंकाने वाली बात है कि पूरे देश में औरतें अपनी बालकनी और खिड़की से गिर कर मर रहीं हैं और उनकी संख्या बेहद गंभीर है. मगर अब इस समस्या के प्रति जागरूकता भी बढ़ रही है और रूढ़िवादी महिलाएं भी इसके लिए आवाज़ उठा रही हैं.”इस साल मार्च में मुख्य विपक्षी दल सीएचपी ने इस्तांबुल और अंकारा सहित कई बड़े शहरों के नगर निगम चुनावों में बड़ी जीत हासिल की.अर्दोआन तीसरी बार राष्ट्रपति चुनाव तो जीत गए लेकिन उनकी पार्टी एकेपी को 20 साल में पहली बार इतना भारी नुकसान उठाना पड़ा.हूर्सन असलाय एक्सोय, बर्लिन स्थित जर्मन इंस्टीट्यूट फ़ॉर इंटरनेशनल एंड सिक्यूरिटी अफ़ेयर्स में तुर्की अध्ययन विभाग की प्रमुख हैं.एक साल पहले संसदीय चुनावों में जनता ने एकेपी को वोट दिया क्योंकि लोग स्थिरता चाहते थे, लेकिन स्थानीय चुनावों में उन्होंने विपक्ष को जीत दिला कर सरकार को चेतावनी दे दी है कि वो सही रास्ते पर नहीं चल रही है. सरकार के लिए यह रेड कार्ड है.तुर्की में महंगाई दर 70 प्रतिशत तक पहुंच गई है जो कि मतदाताओं के लिए एक बड़ा मुद्दा है.महंगाई का सबसे ज़्यादा असर महिलाओं पर पड़ता है. राष्ट्रपति अर्दोआन की निर्भरता उनके गठबंधन के कट्टरपंथी घटक दलों पर बढ़ गई है. रूढ़िवादी महिलाओं के लिए भी इन कट्टरपंथी दलों की सोच चिंताजनक है.उनके गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी स्पष्ट रूप से तलाक के बाद पति की संपत्ति में पत्नी को आधा हिस्सा देने के ख़िलाफ़ है. अगर पति की कमाई पत्नी की आय से ज्यादा है तो उसे पत्नी को खर्च के लिए पैसे देने होते हैं. वो इसके भी ख़िलाफ़ है. गठबंधन के अतिरुढ़िवादी इस्लामी दल महिलाओं को पुरुषों के बराबर नहीं मानते और उन्हें समान अधिकार देने के ख़िलाफ़ हैं. यह लोग तुर्की को ऑटोमन युग में ले जा रहे हैं. अर्दोआन की एकेपी भी अपने मूल सिद्धांतों से बहुत दूर जा चुकी है.तो अब लौटते हैं अपने मुख्य प्रश्न की ओर- क्या तुर्की महिलाओं के लिए ज़्यादा ख़तरनाक बनता जा रहा है?इस बारे में आधिकारिक आंकड़े ना होने की वजह से इसकी सीधा जवाब देना मुश्किल है. लेकिन फ़रवरी में केवल एक दिन में सात महिलाओं की उनके पति या साथी के हाथों हत्या हो गई.यह चिंता भी व्यक्त की जा रही है कि घरेलू हिंसा संबंधी तुर्की का अपना क़ानून महिलाओं को वैसी सुरक्षा नहीं दे पा रहा जैसी इस्तांबुल कन्वेंशन से मिलती थीतुर्की ने ऐसे कई कदम उठाए हैं जो महिलाओं के समान अधिकारों के ख़िलाफ़ हैं.वहीं समान अधिकार विरोधी सोच और वक्तव्य अब मुख्यधारा की राजनीति का हिस्सा बनते जा रहे हैं.

मौसम विभाग के मुताबिक, सोमवार को भी पूरे दक्षिण बंगाल में तेज हवाएं चलने की संभावना है. नादिया और मुर्शिदाबाद के बीच सोमवार को 50-60 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से हवा चलने का अनुमान है. इसके अलावा मौसम विभाग ने चेतावनी दी है कि कोलकाता, हावड़ा, हुगली, दो 24 परगना समेत दक्षिण बंगाल के अन्य जिलों में तेज हवाएं चलेंगी.चक्रवात रेमल के कारण कोलकाता में तेज हवा के साथ भारी बारिश जारी है. जिसके चलते पूरे शहर में पानी भर गया है. राहत एवं बचाव के लिए बंगाल में NDRF की 14 टीमों को तैनात किया गया है.दक्षिण कोलकाता के डीसी प्रियब्रत रॉय ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि उन्हें जानकारी मिली है कि कुछ जगह तूफान के चलते पेड़ उखड़ गए हैं. उन सभी इलाकों में आपदा प्रबंधन टीम पहुंच चुकी है और आगे का काम जारी है. जल्द ही सभी रास्ते ठीक कर दिए जाएंगे, जिससे सुबह तक स्थिति सामान्य हो जाएगी.भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने बताया कि ये भारी चक्रवाती तूफान 'रेमल' बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल की किनारों को पार कर रहा है. आगे उन्होंने बताया अब तूफान धीरे-धीरे कमजोर हो रहा है. लैंडफॉल प्रक्रिया बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल की किनारी क्षेत्रों में जारी है और आगे भी अगले 2 घंटे तक जारी रहेगी.आईएमडी के अनुसार, चक्रवात "रेमल" सागर द्वीप समूह (पश्चिम बंगाल) से लगभग 110 किमी पूर्व में बंगाल की उत्तरी खाड़ी के ऊपर है. ये तूफान अगले 3 घंटे में पश्चिम बंगाल के सागरद्वीप और बांग्लादेश के खेपुपारा के बीच समुद्र तट से टकराते हुए आगे बढ़ेगा.चक्रवात रेमल का असर पश्चिम बंगाल के तटीय इलाकों में दिखने लगा है. कई तटीय इलाकों में तेज हवाओं के साथ बारिश शुरू हो गई है. अगले 4-5 घंटे तक कई इलाकों में भारी से भारी बारिश और तेज हवाएं चलने की संभावना है.



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